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किसानों की आर्थिकी के लिए वरदान है प्राकृतिक कृषि

Byjanadmin

Oct 1, 2018

जहर मुक्त भारत – शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर संगोष्ठी का आयोजन

शिमला
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि सरकार, किसान सहित हर वर्ग व निजी घरानों के सहयोग से प्राकृतिक कृषि की मुहिम को देश स्तर पर व्यापक रूप दिया जा सकता है। कृषि योग्य भूमि को बचाने, स्वस्थ जीवन, किसान व राष्ट्र हित में प्राकृतिक कृषि ही एक प्रमुख विकल्प है, जिस विषय में प्रभावी प्रयासों की जरूरत है।
राज्यपाल आज नई दिल्ली में लारजेस्ट एग्रो रिसर्च फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजक जहरमुक्त भारत – शून्य लागत प्राकृतिक कृषि संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि 35 वर्षों तक गुरुकुल कुरुक्षेत्र के कृषि फार्म में उन्होंने तीनों प्रकार की कृषि की, जिसमें रसायनिक, जैविक और प्राकृतिक कृषि शामिल है। उन्होंने कहा कि रसायनिक कृषि के माध्यम से यूरिय, डीएपी और अन्य रसायनों का अंधाधुंध उपयोग से जमीन बंजर हो गई है और ऐसा खान-पान अनेक बीमारियांे का कारण बन गया है, क्योंकि अन्न जहरयुक्त हो गया है। इसके उपयोग से उत्पादन घटता जा रहा है और लागत बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ, जैविक कृषि में तीन महीने में खाद तैयार होती है, प्रोडक्ट बाजार से खरीदने पड़ते हैं और तीन साल में उत्पादन घटता चला जाता है। जैविक कृषि में खरपतवार भी अधिक आती है। किसानों के लिए यह महंगा सौदा है। काफी शोध के बाद, प्राकृतिक कृषि को ही किसानों के लिए विकल्प के तौर पर लिया है।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि में एक देसी गाय से 30 एकड़ की कृषि की जा सकती है जबकि जैविक कृषि में एक एकड़ में कृषि के लिए 25 से 30 पशु चाहिए। उन्होंने कहा कि ताजा आंकड़ों और विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्राकृतिक कृषि सर्वश्रेष्ठ है और 6 कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, पर्यावरण का संरक्षण होता है, 70 से 80 प्रतिशत पानी की कम खपत होती है, देसी गाय का संरक्षण संभव है और बीमारी से मुक्ति मिलती है। इसे अपनाने से किसान आत्महत्या से बचेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इसे अपनाने से गांव का पैसा गांव में और शहरी का पैसा भी गांव में।
सांसद एस.राजेन्द्रन नेइस अवसर पर राज्यपाल द्वारा किसान हित में प्राकृतिक कृषि के विस्तार मेें किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा कि गांव भारत की जीवन रेखा है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आज कृषि फायदे का सौदा नहीं रह गया है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने आशा जताई कि शून्य लागत प्राकृतिक कृषि किसानों की आर्थिकी में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सहायक होगा।
इससे पूर्व राज्यपाल के ओ.एस.डी. डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने गुरुकुल कुरुक्षेत्र के कृषि फॉर्म के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि राज्यपाल के प्रयासों से गुरुकुल कुरुक्षेत्र का कृषि फार्म प्राकृतिक कृषि का मॉडल बनकर उभरा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के खिलाफ जीना दुनिया की सबसे बड़ी बगावत है। उन्होंने कहा कि आज हम स्वास्थ्य की चुनौतियों के साथ जिन्दा हैं, लेकिन आगे जिन्दा रह पाएंगे, यह बड़ा प्रश्न है। दुनिया की शक्ति का आधार विचार है। इन्हीें विचारों को पद्मश्री सुभाष पालेकर के साथ सांझा कर राज्यपाल ने कृषि के जिस मॉडल की व्यवस्था दी, वह जन हित में है।
लारफ कें सलाहकार एस.एस. संधु ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा संगठन की विभिन्न गतिविधियों से अवगत करवाया। उन्होंने राज्यपाल के शून्य प्राकृतिक कृषि मॉडल में सहयोग करने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृतिक तौर पर तैयार उत्पदों को प्रमोटर द्वारा डेढ़ गुणा दामों पर उठाया जाएगा, जिससे हिमाचल के किसानों को निश्चित तौर पर लाभ होगा।

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