जनवक्ता शिमला
कुपोषण रोकने के लिए केंद्र सरकार का ’पोषण अभियान’ हिमाचल प्रदेश में असरदार साबित होता दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान के झुनझुनू जिला से 8 मार्च 2018 को इस अभियान का शुभारंभ किया गया है। अभियान के पहले चरण में हिमाचल प्रदेश के चंबा, हमीरपुर, सोलन व शिमला जिलों का चयन किया गया। दूसरे चरण में ऊना जिला को इस अभियान के तहत जोड़ा गया। अभियान के तहत बच्चों में ठिगनेपन की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। बाल विकास परियोजना, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज और शिक्षा जैसे संबंधित विभागों को मिलजुल कर काम करना है, ताकि नाटेपन की दर को घटाकर कर वर्ष 2022 तक 15 प्रतिशत तक लाया जा सके। मौजूदा समय में ये दर करीब 26 प्रतिशत है।
अभियान की विशेषताएंः
पोषण अभियान के अन्तर्गत 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शामिल किया गया है। अभियान का मुख्य उद्देश्य कुपोषण की समस्या को मिटाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करना है, जिसके तहत जन्म के समय नवजात बच्चों के वज़न में कमी, रक्त की कमी, भोजन में पोषक तत्वों के असंतुलन को दूर करने के लिए कारगर उपाय अमल में लाना है। इस अभियान के तहत देश के सभी राज्यों में कुपोषण को मिटाने के लिए अभियान छेड़ा गया है। साल 2017-2018 में देश के 315 जिलों को इस अभियान के तहत लाया गया, जबकि 2018-2019 में अन्य 235 जिलों में ये अभियान शुरू किया गया है। बाकी बचे जिलों को साल 2019-2020 में इस अभियान के तहत चलाया जाएगा। इस अभियान के अंतर्गत चिकित्सा अधिकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में कुपोषण, रक्ताल्पता व अन्य पोषण जन्य विकारों के निदान, रोकथाम व उपचार के बारे में जागरूकता पैदा करते हैं।
कैसे पूरा होगा लक्ष्यः
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डा. राजीव सैजल ने बताया कि पोषण अभियान के अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नौनिहालों की निगरानी स्मार्ट फोन के माध्यम से रखते हैं। उनके खान-पान की निगरानी करने के लिए 5 जिलों के करीब 8000 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्ट फोन दिए जा रहे हैं। शेष सात जिलों के 10,000 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अगले साल अप्रैल महीने में स्मार्ट फोन दिए जाएंगे। रियल टाइम निरीक्षण प्रणाली के माध्यम से मिशन के कार्यों को सुचारू रूप से अंजाम देने के लिए कॉमन एप्लीकेशन सॉफ्टवेटर तैयार किया गया है। स्मार्ट फोन में यह सॉफ्टवेयर ऑफलाइन भी चल सकता है। आगंनवाड़ी कार्यकर्ता स्मार्ट फोन के जरिए बच्चों का सटीक डाटा एकत्र करते हैं। सॉफ्टवेयर में बच्चे का नाम, माता-पिता का नाम, उसका वज़न, उसका कद समेत तमाम स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दर्ज की जाती है।
बच्चों का सही डाटा इक्टठा करने के लिए आगंनवाड़ी केंद्रों को इन्फैंटो मीटर, स्टैडीयो मीटर जैसे उपकरण दिए जा रहे हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वज़न का हर महीने रिकॉर्ड दर्ज करते हैं, जबकि लंबाई का रिकॉर्ड हर तीसरे महीने सॉफ्टवेयर में अपडेट किया जाता है। एकत्र किया गया डाटा रियल टाइम पर डैशबोर्ड के जरिए ब्लॉक, जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर के स्टॉफ को उपलब्ध करवाया जाता है। डाटा का आकलन करने के बाद अभियान को सफल बनाने के लिए फैसले लेने में आसानी होगी।
डा. सैजल ने कहा कि बच्चों में कुपोषण एक गंभीर समस्या है और इसके निवारण से ही स्वस्थ समाज की परिकल्पना संभव है। हर बच्चा शारीरिक व मानसिक तौर पर स्वस्थ हो, यह परिवार, समाज और देश की आवश्यकता है। उन्होंने पोषण अभियान की शुरूआत अपने घर से करने तथा इसे जन आंदोलन के रूप में निरंतर रखने की आवश्यकता है। हर व्यक्ति को पोषण से संबंधी जानकारी होनी चाहिए।
पोषण कार्यक्रम के पीछे प्रधानमंत्री की सोच एक स्वस्थ और सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण करना है। आधे से अधिक बच्चों में खून की कमी होती है। नवजात के लिए मां का दूध एक घण्टे के भीतर मिलना आवश्यक है और बच्चे को कम से कम छः महीने तक मां का दूध ही दिया जाना चाहिए और इसे दो वर्ष तक जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों में दस्त, न्यूमोनिया व कमजोरी के बहुत मामले सामने आते हैं। जीवन के पहले 1000 दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और इस दौरान तेजी से बच्चे के मस्तिष्क का विकास और शरीर परिपक्व होता है। इस दौरान बच्चे का विकास उसके वयस्क विकास को प्रभावित करता है। इन दिनों पोषण की कमी बच्चे के भावी जीवन पर विपरीत प्रभाव डालती है। तकनीकी का उपयोग, विभिन्न विभागों की योजनाओं का तालमेल तथा जन सहभागिता बच्चों में कुपोषण की समस्या से निपटने के तीन महत्वपूर्ण बिन्दु हैं।