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लोक- नृत्यकला के अभ्युत्थान के प्रति समर्पित रही है फूलां चंदेल की अब तक की जीवन यात्रा

Byjanadmin

Oct 15, 2018

फूलां चंदेल गर्व के साथ कहती हैं कि उन्होंने विदेशों में भी अपनी लोक कला की धाक जमाई तथा अपने देश का शायद ही कोई कोना बचा हो जहां उनके द्वारा बिलासपुर लोक शैली के नृत्य की प्रस्तुति न की गई हो। एक ओर जहां बिलासपुरी लोक नृत्य को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का इस कलाकार को गर्व है, वहीं दूसरी ओर अपने क्षेत्र में कुछ कर दिखाने का संतोष भी है

जनवक्ता साक्षात्कार


फूलां चंदेल की अब तक की जीवन यात्रा लोक- नृत्यकला के अभ्युत्थान के प्रति समर्पित रही है। बाल कलाकार के रूप में इस होनहार लोक नर्तकी ने 11 वर्ष की आयु में अपने ही गांव में पहला कार्यक्रम पेश किया था। बचपन से शुरू हुई नृत्य यात्रा आज भी नई बुलंदियों को स्पर्श कर रही है । फूलां चंदेल गर्व के साथ कहती हैं कि उन्होंने विदेशों में भी अपनी लोक कला की धाक जमाई तथा अपने देश का शायद ही कोई कोना न बचा हो जहां उनके द्वारा बिलासपुर लोक शैली के नृत्य की प्रस्तुति न की गई हो। एक ओर जहां बिलासपुरी लोक नृत्य को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का इस कलाकार को गर्व है, वहीं दूसरी ओर अपने क्षेत्र में कुछ कर दिखाने का संतोष भी है। फूलां चंदेल का जन्म बिलासपुर जिले के घुमारवीं उपमंडल के सोई गांव में हुआ। सोई गांव की दमोदरी देवी व स्व. कांशीराम चंदेल के घर जन्मी फूलां चंदेल की शिक्षा घुमारवीं में ही हुई तथा अपने ही गांव के स्कूल से उन्होंने स्वयंसेवी अध्यापिका के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। इन दिनों वह कार कुकहार प्राथमिक पाठशाला में मुख्याध्यापिका के रूप में कार्यरत है। नृत्य कला में विशेष रूचि होने के कारण फूलां चंदेल ने किशोरावस्था में पाठशालाओं की लोक नृत्य प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर अपनी टीम को सर्वोत्तम स्थान ही नहीं दिलाया, बल्कि चमत्कारी घट नृत्य पेश करके दर्शक-श्रोताओं की वाहवाही भी लूटी तथा तालियां भी बटोरीं। प्रदेश में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय मेलों में फूलां चंदेल ने घट नृत्य व पूजा नृत्य की प्रस्तुतियां देकर कार्यक्रमों को यादगार बनाया। हाल ही में इस पहाड़ी प्रदेश की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए जी न्यूज पंजाब चैनल द्वारा उन्हें शिखर सम्मान दिया गया। यह सम्मान मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल द्वारा शिमला में भेंट किया। फूलां चंदेल का विवाह घुमारवीं उपमंडल के घंडालवीं गांव में चौहान वंशज मिलाप चौहान से हुआ। हालांकि विवाह के बाद फूलां चंदेल फूलां चौहान बन गई, लेकिन लोग उन्हें आज भी फूलां चंदेल के नाम से ही जानते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस लोक नर्तकी में बचपन से ही कुछ कर दिखाने की चाह थी। अपनी इस कामयाबी का श्रेय स्वजनों देती हुई वह कहती हंै कि परिवार में सबसे बड़ी संतान होने के कारण मां-बाप ने उन्हें हमेशा बेटा ही समझा। इसलिए उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा बराबर मिलती रही। यह इस नृत्यांगना की खुश किस्मती कही जाएगी कि ससुराल में भी उन्हें ऐसा ही वातावरण मिला, जहां इस लोक कला को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखता था। अपनी उपलब्धियों के लिए वह अपने पति को भी बराबर का भागीदार मानती हंै। साधारण परिवार की इस लोक नृत्यांगना को बचपन में अपने घर में संगीत व नृत्य का कोई विशेषवातावरण नहीं मिला। सिवाय इसके कि इनके पिता हारमोनियम बजाने में विशेष रूचि रखते थे। वैसे तो तब महिलाओं का स्टेज पर कार्यक्रम देना अच्छा नहीं समझा जाता था। अलबत्ता वह शादी-ब्याह व अन्य खुशी के मौकों पर गिद्दा खूब नाचतीं। अतः शुरू के दिनों में परिवार में इसका विरोध होना स्वभाविक ही था, किंतु समकालीन परंपरा से अनभिज्ञ बाल्यकाल में इस नृत्यांगना की जिद्द के आगे स्वजनों की एक नहीं चली और उन्हें विवश होकर इजाजत देनी ही पड़ी। आज आलम यह है कि इनकी नृत्य की पूरे देश में ख्याति है। अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना हो या अंतर्राज्यीय फूलां चंदेल ने हर जगह अपने हुनर का लोहा मनवाया। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला, भाषा संस्कृतिक विभाग, नेहरू युवा केंद्र व युवा सेवाएं एवं खेल विभाग की ओर से होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इस लोक नृत्यांगना की हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है और हर कार्यक्रम में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की । राष्ट्रीय स्तर की अनेक सामाजिक संस्थाओं ने फूला चंदेल को कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए अपने आयोजनों में बुलाया तथा उचित मान-सम्मान दिया। अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस लोक नृत्यांगना की नृत्य शैली, स्थानीय पहिया नृत्य के साथ गिद्दा के सुंदर संयोजन पर आधारित है। दर्शक उस समय दम साधे इनकी कला का कमाल देखता है, जब वह सिर पर पानी के गिलास के ऊपर एक के बाद एक नौ की संख्या तक घड़े रखकर पारंपरिक नृत्य करती हैं। इसे घट नृत्य कहा जाता है। इसके अलावा पूजा नृत्य में थाली में आठ गिलास व गिलासों पर फिर थाली उस क्रम में सात थालियां व 50-55 गिलास उठाकर दोनों पैरों के नीचे पानी से भरे गिलासों पर नृत्य करती है। सिर पर घड़े या थालियां रखे जब फूला चंदेल मुंह से रूमाल उठाती है, तो दर्शक श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूंज जाता है। थालियांे पर रखे गिलासों में रंग-बिरंगा पानी होता है, जो इस बेजोड़ प्रस्तुति को और भी आकर्षक बनाता है। घट नृत्य का भी ऐसा ही कमाल है। इनके कौशलपूर्ण नृत्य की अमिट छाप हर नृत्य प्रेमी हिमाचल वासी के दिल में पड़ी है। वास्तव में इस नृत्यांगना के व्यक्तित्व के दो पहलू हैं, जिनमें लोककला को समर्पित जीवन तो उनकी हॉबी है और अध्यापन इनका व्यवसाय। मजे की बात यह है कि दोनों में सेे कोई भी एक-दूसरे पर हावी नहीं है, बल्कि दोनों में गजब का संतुलन है। वह लोककला को अर्पित जीवन से पूरी तरह संतुष्ट है और अध्यापन कार्य भी पूरे मनोयोग से करती है। वह कहती है कि दोनों में से जब एक भी गौण हो जाता है तो जिंदगी में अधूरापन सा आने लगता है।

प्रस्तुति
रामलाल पाठक,
गांव चिड़की
डाकघर ब्रह्मपुखर,
तहसील सदर,
जिला बिलासपुर

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