सीता जी को सादर लौटा दो अन्यथा न तो तुम रहोगे और न ही तुम्हारी ये स्वर्ण लंका
जनवक्ता डेस्क बिलासपुर
रावण अभिमान मत कर, जिन्होंने शिव धनुष तोड़ा, परशुराम का गर्व भंग किया और जिन्हें तू भी मानता हैं वे राम कोई साधारण मानव नहीं साक्षात भगवान हैं। मेरी मानो तो सीता जी को सादर लौटा दो, अन्यथा न तो तुम रहोगे और न ही तुम्हारी ये स्वर्ण लंका। जब यह संवाद रावण के भरे दरबार में प्रभु राम का दूत बनकर गए अंगद ने कहे तो समूचा पंडाल तालियों की गडगड़ाहट से गूंज उठा। अंगद भरे रावण के दरबार में युद्ध की घोषणा कर देते हैं। प्रभु राम ने लंका पर चढ़ाई करने के पूर्व अंगद को राजदूत का दर्जा देकर लंका भेजा था। पहले दृश्य में रावण अपने भाई विभीषण को लंका से निष्कासित कर देते हैं। तीसरे दृश्य में रावण अपने भाई कुंभकर्ण के पास सहायता के लिए जाता है। इस दृश्य में कुंभकर्ण का अभिनय कर रहे संदीप सैंडी ने लोगों को तालियां बजाने पर विवश किया वहीं दूसरी ओर भगवान राम युद्ध की रणनीति तैयार करते हैं और प्रथम युद्ध का कार्यभार वीर लक्ष्मण को सौंपते हैं। युद्ध में मेघनाद ब्रम्हास्त्र का प्रयोग कर लक्ष्मण को मूर्छित कर देते हैं। हनुमान लक्ष्मण को वापस युद्ध शिविर में ले आते हैं।
भाई को मूर्छित देख भगवान राम भी अपने आंसू रोक नहीं पाए
ऐसे में हनुमान लंका से वैद्यराज सुषैण को लेकर आते हैं जो गंधमादन पर्वत पर स्थित संजीवनी नामक बूटी को सूर्योदय से पहले लाने के लिए कहते हैं। गंधमादन पर्वत पर हनुमान पर्वत के प्रहरी कालनेमी को मारते हैं तथा वे भूल जाते हैं कि वे किस बूटी को लेने आए हैं। ऐसे में वीर हनुमान बिना विलंब किए पूरा पर्वत ही उठाकर ले आते हैं तथा लक्ष्मण के प्राण बचाते है। इस संध्या में राम का अभिनय नवीन सोनी, लक्ष्मण रिशु शर्मा, हनुमान राजेंद्र चंदेल, अंगद पारस गौतम, सुषैण शिव नाथ सहगल, कुभंकर्ण संदीप गुप्ता, रावण बृजेश कौशल, कालनेमी साहिल, विभिषण रजत कुमार, मेघनाद नितिन तांडी, सुग्रीव गिरीश, महोदर अभिषेक डोगरा व सभासदों में आशीष कंडेरा, अमन गागट, मनीष कौंडल, सुभाष, अमन आदि ने अपने किरदार को बखूबी निभाया।