पंचकर्म व क्षारसूत्र प्रभावी व लोकप्रिय उपचार पद्वतियां
अरूण डोगरा रीतू
शिमला
राज्य में विशाल हर्बल संपदा विद्यमान है, और प्रदेश सरकार पारंपरिक भारतीय चिकित्सा परिसंपतियों के समुचित दोहन के प्रति वचनवद्ध है। प्राचीन काल से ही भारतीय चिकित्सा पद्धति तथा होम्योपेथी की स्वास्थ्य उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह ऐसी उपचार पद्धति है जो रोग को हमेशा के लिए जड़ से समाप्त करने की क्षमता रखती है।
प्रदेश में 34 आयुर्वेदिक अस्पताल, 1175 आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र 14 होम्योपैथिक स्वास्थ्य केंद्र, 3 युनानी स्वास्थ्य केंद्र, 4 अमाची स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से लोगों को उपचार की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। विभिन्न आयुर्वेदिक अस्पतालों में 17 स्थानों पर पंचकर्मा विशेषज्ञ सेवाएं तथा 9 क्षारसूत्र इकाईयां स्थापित की गई हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ जैसे पंचकर्म क्षारसुत्र उपचारात्मक योग इत्यादि सेवाएं भी आयुर्वेदिक असपतालों में प्रदान की जा रही है।
मुख्यमंत्री द्वारा राज्य कि तीन विकास खण्डों ठियोग, करसोग तथा कसौली में अनीमिया रोकथाम कार्यक्रम की घोषणा की गई है जिसपर एक करोड़ 27 लाख रुपये की धनराशि व्यय की जानी प्रस्तावित है। यह राशि आयुष मंत्रालय द्वारा प्रदान की जा रही है। आयुर्वेद निदेशालय में केन्द्रीय सहायता से एक कार्यक्रम प्रबंधन इकाई की स्थापना की गई है जिससे केन्द्र सरकार तथा प्रदेश सरकार की योजनाओं को समयबद्ध एवं प्रभावी रूप से क्रियान्वित की जा सके तथा युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हों। इस प्रकार की इकाईयां जिला स्तर पर भी स्थापित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने केन्द्र को भेजा था जिसे मंत्रालय ने सैद्धान्तिक मंजूरी प्रदान की है।
केन्द्र सरकार को तीन राजकीय आयुर्वेदिक फार्मेसियां तथा एक औषधि परीक्षण प्रयोगशाला के सुदृढ़िकरण के लिए चार करोड़ की केन्द्रीय सहायता के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था जिस पर आयुष मंत्रालय ने अपनी सहमति प्रदान की है। यह राशि फार्मेसियों के लिए नई मशीनों का क्रय करने तथा इन हाउस गुणवत्ता जांच प्रयोगशाला स्थापिन के अलावा श्रमशक्ति बढ़ाने पर व्यय की जाएगी। प्रदेश में निजी क्षेत्र में कार्यरत आयुर्वेदिक दवा निर्माताओं की औषधियों की गुणवता जांचने के लिए दवा निरीक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भी इस अतिरिक्त वित्तीय सहायता में राशि का प्रावधान रखा गया है।
आयुर्वेद मंत्री विपिन सिंह परमार ने बताया कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए 7.58 करोड़ रुपये की वार्षिक कार्य योजना का प्रस्ताव आयुष मंत्रालय को भेजा था। आयुष मंत्रालय ने राज्य द्वारा प्रस्तुत उपयोगिता प्रमाण पत्र तथा व्यय विवरण के आधार पर राज्य के लिये यह राशि प्रदान की है। राज्य में आयुर्वेद क्षेत्र में अच्छा कार्य करने पर प्रदेश को अनुपूरक कार्य योजना तैयार करने का अवसर प्राप्त हुआ। विभाग ने 19.85 करोड़ रुपये की अनुपूरक वार्षिक कार्य योजना चालु वित्त वर्ष के लिए आयुष मंत्रालय को प्रस्तुत की थी, और आयुष मंत्रालय ने 28 नवम्बर 2018 को दिल्ली में आयोजित बैठक में राज्य के लिए यह राशि स्वीकृत करने के लिए अपनी सहमति प्रदान की है।
विपिन सिंह परमार ने बताया कि राज्य को इतनी बड़ी राशि पहली बार प्राप्त हुई है जिससे आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा। इस राशि में से 8 करोड़ रुपये आयुर्वेदिक औषधियों की खरीद पर व्यय किए जाएंगे जो राज्य के औषधि क्रय बजट के अतिरिक्त होगी। शेष राशि को अस्पतालों में आधारिक संरचना उपलब्ध करवाने के लिए व्यय किए जाएगा जिसके अंतर्गत आवश्यक उपकरणों की खरीद, पंचकर्म एवं क्षारसूत्र केन्द्रों की स्थापना सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं का सृजन किया जाएगा।
परमार ने बताया कि राज्य में लगभग 250 किस्म के औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है। प्रदेश में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य औषधीय पादप बोर्ड का गठन किया गया है। किसानों और बागवानों को औषधीय पौधों की खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे न केवल उनकी आर्थिकी मजबूत होगी, बल्कि आयुर्वेद औषधियां तैयार करने के लिये इन पौधों की पर्याप्त उपलब्धता भी सुनिश्चित होगी।