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प्राकृतिक खेती विषय पर प्रदेश की प्रथम किसान परिचर्चा आयोजित

Byjanadmin

Jan 4, 2019

आचार्य देवव्रत का किसानों से प्राकृतिक कृषि को समपर्ण एवं ईमानदारी के साथ अपनाने का आह्वान

जनवक्ता ब्यूरो सोलन
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कृषकों का आह्वान किया कि वे प्राकृतिक खेती को समर्पण एवं ईमानदारी के साथ अपनाएं ताकि उत्पादन एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़े। आचार्य देवव्रत आज डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पर आयोजित किसान परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि प्राकृतिक खेती भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है तथा मानव के स्वास्थ्य की रक्षा करती है। उन्होंने कहा कि वे प्राकृतिक कृषि के संबंध में स्वयं अनुभव करने के उपरांत ही किसानों को इस दिशा में प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे 25 वर्ष तक रसायनिक खाद युक्त कृषि एवं जैविक खेती करने के उपरांत प्राकृतिक खेती की ओर प्रवृत हुए तथा इसके परिणाम ने उन्हें किसानों को प्राकृतिक खेती की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
राज्यपाल ने कहा कि प्राकृतिक कृषि प्रकृति के मूल तत्वों मूलतः देसी गाय पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले अन्य तत्व भी प्रकृति से ही लिए गए हैं। देसी गाय के मात्र एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ से अधिक लाभदायक जीवाणु पाए जाते हैं। यह जीवाणु भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। देसी गाय के गोबर के उपयोग से प्राकृतिक रूप से केंचुओं की बढ़ोत्तरी होती है जो भूमि को दीर्घावधि के लिए कृषि योग्य बनाकर वर्षा जल संग्रहण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि खाद के लिए प्रयोग में लाए जा रहे विभिन्न प्रकार के रसायन आरंभ में पैदावार बढ़ाते हैं किन्तु धीरे-धीरे भूमि को बंजर बना देते हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे पदम श्री डॉ. सुभाष पालेकर द्वारा प्रचारित प्राकृतिक खेती की विधि अपनाएं। यह विधि आर्थिक रूप से भी लाभदायक है तथा इसमें रसायनिक खाद की अपेक्षा जल भी काफी कम प्रयुक्त होता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि के उत्पादों के विपणन के लिए भी योजनाबद्ध कार्य किया जा रहा है। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे प्राकृतिक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए समूह बनाकर कार्य करें।
राज्यपाल ने कहा कि रसायन खाद युक्त कृषि कैंसर जैसे भयावह रोग को बढ़ावा दे रही है। शोध के अनुसार गत एक से डेढ़ वर्ष में कैंसर रोगियों की संख्या में 25 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। प्राकृतिक कृषि के उत्पाद इस दिशा में भी मनुष्य एवं अन्य जीवों के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्रदेश सरकार देसी गाय की खरीद को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र ही प्रावधान करने जा रही है। किसानों को देसी गाय क्रय करने के लिए 25 हजार रुपये का उपदान दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि देसी गाय कृषि के साथ-साथ किसान की आय वृद्धि में भी सहायक बनेगी। देसी गाय के दूध की गुणवत्ता पूरे विश्व में सिद्ध हुई है।
डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एचसी शर्मा ने मुख्यातिथि का स्वागत किया।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के परियोजना निदेशक राकेश कंवर ने मुख्यातिथि का स्वागत करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती के संदर्भ में राज्य में यह प्रथम किसान परिचर्चा आरंभ की गई है। शीघ्र ही ऐसी परिचर्चाएं राज्यभर में आयोजित की जाएंगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रदेश के 80 विकास खण्डों में से 79 विकास खण्डों में 2547 कृषक प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने प्राकृतिक कृषि को पूरे देश में कार्यान्वित करने के लिए सभी राज्यों की बैठक बुलाने का निर्णय लिया है। केन्द्र सरकार की विभिन्न कृषि योजनाओं में प्राकृतिक खेती के लिए धन भी उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया गया है।
इस अवसर पर बिलासपुर के प्राकृतिक खेती कर रहे कृषक ब्रह्म दास, शिमला के रोहड़ू के कृषक अनिल चौहान, ठियोग के कृषक संदीप शर्मा, सिरमौर के नाहन के कृषक हरिंद्र सिंह, पावंटा साहिब की कृषक जसविंद्र कौर, ऊना के बंगाणा के कृषक मंजीत सिंह, सोलन के नालागढ़ के कृषक श्याम लाल, बद्दी की लोधीमाजरा की किसान रक्षा देवी तथा गम्भर पुल के किसान शेर सिंह ने इस विषय पर अपने अनुभव साझा किए। अन्य किसानों ने भी विचार-विमर्श में महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के कार्यकारी निदेशक डॉ. राजेश्वर चंदेल ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर प्राकृतिक खेती के विषय पर एक लघु वृत्तचित्र भी दिखाया गया।
इस अवसर पर निदेशक कृषि देशराज शर्मा, उपायुक्त सोलन विनोद कुमार, पुलिस अधीक्षक मधुसूदन शर्मा सहित सोलन, शिमला, बिलासपुर, सिरमौर तथा ऊना के 800 से अधिक किसान एवं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक उपस्थित थे।

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