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खुले ना रख सके घरों के दरवाजे खिड़कियां झरोखे कोई बात नहीं

Byjanadmin

Jan 22, 2019

भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर की मासिक संगोष्ठी

जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर द्वारा करवाई जाने वाली मासिक संगोष्ठी में उद्योग विभाग में महाप्रबंधक पद पर कार्यरत प्रोमिला भारद्वाज ने अपनी इस रचना के माध्यम से आमजन को झझकोर कर रख दिया। उन्होंने अपनी कविता में कहा खुले ना रख सके घरों के दरवाजे खिड़कियां झरोखे कोई बात नहीं दिलो दिमाग के दरवाजे खिड़कियां झरोखे खुले रखंे । इस संगोष्ठी की अध्यक्षता जिला भाषा अधिकारी नीलम चंदेल ने की जबकि मंच का संचालन इंदर सिंह द्वारा किया गया। सर्वप्रथम साहित्यकारों और कवियों द्वारा मां सरस्वती की ज्योति प्रज्वलित करके वंदना की गई जिसे इंदर सिंह चंदेल ने अपने स्वरों में ढाला और कहा ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें औश्र बदी से टलें। । उसके बाद सत्या शर्मा ने अपनी रचना नव वर्ष अभिनंदन प्रस्तुत की। रामपाल डोगरा की कविता की शीर्षक था रास्ते का पत्थर । सुरेंद्र मिन्हास ने कहा कि धुंध की चादर ओढ़े मेरा शहर शिशिर ऋतु में ढाए कहर। अमरनाथ धीमान ने पहाड़ी रचना प्रस्तुत की। जिसके बोल थे सुण ओ बाटा जांदेया मुसाफिरा मेरी बी मुया इक गल्ल सुणदा जायां। रविंदर चंदेल ने अटल बिहारी बाजपेई को याद करते हुए कहा लौ बुझ गई मत यह समझना अटल रहेंगे शब्द तुम्हारे प्रेम तुम्हारा रहेगा अटल रहेगी नींव तुम्हारी। तृप्ता देवी ने पंजाबी रचना सुनाई शहादत गुरु गोविंद सिंह जी की और पंक्तियों थीं। ठंडीए हवाए कानू ठरू ठरू लाई ए माही नूं ना छेड़ इन्हें मसां नींद आई ए। अरुण डोगरा ऋतु ने मां के ऊपर अपनी कविता पढ़ी। जनवक्ता की संपादक सुमन डोगरा भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहीं। अंत में जिला भाषा अधिकारी नीलम चंदेल ने सभी कवियों के साहित्यकारों का इस संगोष्ठी में सुंदर रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा एवं संस्कृति विभाग का यह प्रयास रहता है कि अपने कार्यक्रमों के माध्यम से विलुप्त हो रही लोक संस्कृति साहित्य एवं नैतिक मूल्यों का संरक्षण करे और इसका प्रचार और प्रसार हो सके। उन्होंने बताया कि अगले महीने की संगोष्ठी 20 फरवरी को आयोजित की जाएगी उसमें सभी सादर आमंत्रित हैं।

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