पूर्व मुख्यमंत्री ने समीरपुर प्राइमरी स्कूल में होनहार बच्चों को किया सम्मानित
जनवक्ता ब्यूरो, हमीरपुर
नींव यदि पक्की हो तो उस पर बड़ी से बड़ी इमारत खड़ी की जा सकती है, लेकिन यदि कच्ची नींव पर इमारत खड़ी भी कर दी जाए तो वह बाद में गिर जाती है। प्राथमिक शिक्षा बच्चों के भविष्य की नींव होती है। 1999 में सरस्वती बाल विद्या संकल्प योजना चला कर हमने इस नींव को पक्का किया है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रो० प्रेम कुमार धूमल ने समीरपुर प्राइमरी स्कूल के वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह बतौर मुख्यतिथि अपने सम्बोधन में बात कही। उन्होंने कहा कि 1998 तक प्रदेश के 1964 प्राइमरी स्कूल ऐसे थे जिनके पास भवन नहीं था, लगभग 2000 ऐसे थे जहां केवल एक कमरा था। बच्चे खुले आसमान के नीचे या फिर प्रधान के घर, महिला मंडल भवन में कक्षाएं लगाते थे। हमने 2002 में योजना को पूरा कर प्रदेश के सभी प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को 3-3 कमरे बनवा कर दिए।
जीवन में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पूर्व सीएम ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य जीवन में केवल किताबी ज्ञान ग्रहण करना होता है, यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है। समाज में अपना योगदान देने के काबिल नागरिक बनाना ही शिक्षा का सही उद्देश्य है। शिक्षा ग्रहण करने की कोई उम्र नहीं होती, बढ़े बढ़े विद्वान भी जीवन भर कुछ सीखते हैं। व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होना ही सही मायने में शिक्षित होना है। बच्चे को सही रूप से शिक्षित करने का दायित्व शिक्षक का होता है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा के ढांचे को मजबूत करने के साथ-साथ हमने शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षकों को भी उचित माहौल मिले उसकी सुदृढ़ व्यवस्था की है। जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में निचले इलाकों के बहुत ही शिक्षक अपनी सेवाएं देते हैं। उन शिक्षकों को इन क्षेत्रों में अपनी ड्यूटी करते हुए एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता था। उन्हें रहने के लिए कमरे नहीं मिलते थे नहीं मिलते थे और कई जगह स्थानीय लोगों के साथ ज्यादा मेल मिलाप ना ना होने की वजह से उन्हें अक्सर स्कूल से छुट्टी के बाद कमरे में ही रहना पड़ता था। हमने यशवंत गुरुकुल योजना लाई और प्रदेश के जनजातीय व दुर्गम क्षेत्रों के हाई और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में 9-9 कमरे के हॉस्टल बना कर दिए और वहां पर रहने के लिए उपयोगी वस्तुओं की व्यवस्था भी की, ताकि दूसरे जिलों से जब भी कोई शिक्षक बच्चों को पढ़ाने आए तो उसे अपनी सेवाएं देते हुए उचित माहौल मिले और किसी समस्या का सामना ना करना पड़े। प्रदेश में अध्यापकों की कमी को दूर करने के लिए हमने विद्या उपासक लगाए थे जिन्हें सरकार बदलने के बाद पक्का नहीं किया गया बाद में फिर से हमारी सरकार बनी तो हमने उनको पक्का किया।
प्रो० धूमल ने कहा कि छोटे बच्चों को स्कूल जाते हुए किताबों का भारी बोझ ना उठाने पड़े इसके लिए हमने प्राइमरी कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाई जाने वाली किताबों की संख्या में कमी की। जब यूपीए सरकार ने नवमी कक्षा तक बच्चों की परीक्षा लेना बंद कर दी दी बंद कर दी दी और कहा कि उन्हें ऐसे ही पास करते जाओ, इस बात का हम ने विरोध किया। यह शिक्षा व्यवस्था अमेरिका में पहले ही फेल हो चुकी थी फिर भी से से हमारे देश में लागू किया गया, परिणाम यह हुआ कि दसवीं में जो बच्चों ने परीक्षा देना शुरू की तो उन पर पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा और वह उत्तीर्ण ना हो पाए। हम धन्यवाद करते हैं एनडीए सरकार का जिन्होंने फिर से पुरानी व्यवस्था बहाल कर बच्चों की परीक्षाएं होना सुनिश्चित की हैं।
प्रो० धूमल ने कहा कि आज प्रतिस्पर्धा का युग है, यह प्रतिस्पर्धा बच्चों की परीक्षाओं में ही नहीं बल्कि समाज के हर एक क्षेत्र में है क्षेत्र में है। पहले जब फर्स्ट डिवीजन में परीक्षा पास कर लेना काफी होता था, की तुलना में आज शत प्रतिशत परिणाम हासिल करने वाले विद्यार्थी हैं। आज सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट का समय है। यदि आने वाली पीढ़ी के बच्चों को प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार नहीं किया जाएगा तो वह पिछड़ जाएंगे और आगे बढ़ने के लिए हर क्षेत्र में फिट होना जरूरी है। निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानो ने प्रतिस्पर्धा की भावना लाने में बहुत योगदान दिया है। समाज में, अधिकारियों कर्मचारियों में, आने वाले पीढ़ी के बच्चों के भविष्य में सुधार लाने के लिए समय-समय पर तुलना की और प्रतिस्पर्धा की भावना होना जरूरी है।
इस अवसर पर जिला महामंत्री राकेश ठाकुर, खंड शिक्षा अधिकारी सुखदेव, स्कूल के मुख्य अध्यापक सुनील ठाकुर, सेवानिवृत्त प्रिंसिपल विनोद एवं जगदीश सिंह कंवर, अध्यापक अध्यापिकाएं, स्कूली बच्चे और उनके अभिभावकों सहित अन्य लोग उपस्थित थे।