श्रीकृष्ण कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मुख्य अतिथि नयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर रहे जिन्होंने साध्वी कालिंदी भारती को पुष्प गुच्छ भेंट किया
प्रवचन करती साध्वी कालिंदी भारती
कथा का श्रवण कर रही मातृ शक्ति
जनवक्ता लाइव डेस्क, बिलासपुर
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा बिलासपुर नगर के डियारा सेक्टर में नगर परिषद मैदान में आयोजित की जा रही श्रीकृष्ण कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मुख्य अतिथि नयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर थे। उन्होंने द्वीप प्रज्वलित किया और साध्वी को पुष्प गुच्छ भी भेंट किया। उनके साथ जिला कांग्रेस के प्रधान कमलेंद्र कश्यप व नगर परिषद की अध्यक्षा सोमा देवी ने भी कथा का श्रवण किया। इसके बाद कथा का वाचन करते हुए कथा व्यास साध्वी कालिंदी भारती ने कहा कि ईश्वर की कृपा से प्राप्त मनुष्य जन्म का लाभ यही है कि हम ज्ञान और भक्ति से अपने जीवन को ऐसा बना लें कि जीवन के अंत समय में भी प्रभु का ही स्मरण बना रहे। भगवान श्रीकृष्ण जी ने श्रीमद्भागवद्गीता में कहा है कि जो प्राणी अंत काल में मेरा स्मरण करता हुआ अपनी देह का त्याग करता है वह मुझे ही प्राप्त होता है। भाव अगर अंत समय में उस ईश्वर को ही याद किया तो उसे पाने का सौभाग्य प्राप्त होगा। जब कलयुग का आगमन होता है तो वह राजा परीक्षित से उसके राज में रहने के लिए ऐसी जगह की मांग करता है जहां वह आराम से रह सके। लेकिन राजा परीक्षित उसी कलयुग के प्रभाव के कारण ऋषि से शापित हो जाता है। उसके पश्चाताप में राजा परीक्षित शुकदेव जी के पास जाते है। परीक्षित भी शुकदेव जी के श्री चरणों में बैठकर उस जगदीश्वर को जान लेना चाहते हैं। परीक्षित जी के मन में अनेकों प्रश्न हैं किंतु जितने प्रश्न मन में थे उतने ही नारद जी के मन थे। नारद जी को समाधान मिला ब्रह्मा जी से और परीक्षित की जिज्ञासा शुकदेव जी से शांत हुई। गुरु और शिष्य की परंपरा शुरू से ही चलती रही है। अगर आप भी प्रमात्मा को जानना चाहते हैं तो आपको भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए। गुरु सूर्य के समान तथा चंद्रमा एक शिष्य के समान है। गुरु रूपी सूर्य के प्रकाश में तप कर ही शिष्य दुनिया को शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान फैलाता है। कबीर जी के गुरु रामानंद जी थे तो मीरा बाई के गुरु रविदास जी थे। नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ स्वामी परमहंस जी थे। शिवा जी मराठा के अपरिमित बल के पीछे समर्थ गुरु रामदास जी की असीम शक्ति और प्रेरणा कार्यरत है। अतरू गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुंच सकते। यही संदेश स्वयं प्रकृति भी हमें देती है।
वर्षा ने डाला व्यवधान
श्रीकृष्ण कथा जब अपने चरम पर थी तो अचानक बादल घिर आए और एकदम वषा्र आरंभ हो गई। ऐसे में कथा का आगे चलाए रखना कठिन हो गया था इसलिए आधा घंटा पहले ही कथा को विराम दे दिया गया।