कृष्ण कथा के चतुर्थ दिवस भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़े धूम धाम से मनाया गया
भगवान कृष्ण जन्मोत्सव पर नरेंद्र पंडित ने सपत्नीक पूजन किया
जनवकता डेस्क, बिलासपुर
श्री कृष्ण कथा के चतुर्थ दिवस भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़े धूम धाम से मनाया गया। भगवान कृष्ण जन्मोत्सव पर नरेंद्र पंडित ने सपत्नीक पूजन किया। साध्वी द्वारा भक्तों में टॉफी व कैंडी की वर्षा खिलौनों सहित की गई। जिस कारण पूरा पंडाल ही कृष्ण मय हो गया। साध्वी ने समाज में चल रहे विभिन्न कर्मों को लेकर फैली धारणाओं और उनके वास्तविक कारण की विवेचना करते हुए समझाया कि पीपल पूजा एवं तुलसी पूजा का कारण उसका लगातार ऑक्सीजन देते रहना है। चन्द्र ग्रहण में बाहर जाना इसलिए हानिकारक होता है क्योंकि उस समय पराबैंगनी किरणें बहुत अधिक होती है जो मानव शरीर के लिए घातक है। ज़मीन पर बैठकर भोजन करना इसलिए अच्छा है क्योंकि उस से भोजन जल्दी पच जाता है और आप स्वस्थ रहते हैं। सूर्य को जल देना इसलिए हितकर है क्योंकि उस से नेत्र ज्योति ठीक रहती है लेकिन इसका समय सूर्योदय का होता है। साध्वी ने कहा आज हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है इसलिए अपराध बढ़ रहे हैं। नैतिकता का हनन हो रहा है। चरित्र का हनन हो रहा है। नशे और गलत आदतों के गुलाम होते जा रहें हैं। इसलिए हमें अपने समाज को बचाने के लिए अपनी संस्कृति की ओर लौटना होगा। क्योंकि अगर किसी देश को बर्बाद करना है तो उस देश की संस्कृति को समाप्त कर दो वह स्वयं समाप्त हो जाएगा।
भारत का गौरव उसकी संस्कृति और आध्यात्म में हैं। बिना आध्यात्म के श्रेष्ठ विचार श्रेष्ठ नागरिकों का सृजन असंभव है। आज के परिवेश में भी मानव को ब्रह्मज्ञान की नितांत आवश्यकता है। ब्रह्मज्ञान से अभिप्राय उस ब्रह्म को देख लेने से अथवा जान लेने से है। ब्रह्म को देखने अथवा जानने हेतु हमें एक पूर्ण संत की शरणागत होना होगा। पूर्ण संत हमारे घट में ही हमें उस परब्रह्म से भेंट करवा हमारे जीवन में हमें भक्ति प्रदान कर देतें है। इसलिए शास्त्रों में कहा भी गया है।
गुरु बिनु भव निधि तरई न कोई।
ज्यों बिरंच शंकर सम होई।।
भाव गुरु के बिना मुक्ति संभव नहीं है चाहे आप में ब्रह्मा अथवा शंकर के सामान कितना भी सामर्थ्य क्यों ना आ जाए। अतः हम भी अपने जीवन का कल्याण चाहते है तो हमें भी पूर्ण गुरु की शरणागत होना होगा।
कथा के चतुर्थ दिवस रवि दत्त प्रभाकर, भूपेश चंदेल, राजेन्द्र ठाकुर आदि ने पूजन कर प्रभु आशीष को प्राप्त किया।
कथा में विशेष रूप से क्षेत्रीय कार्यालय के संयोजक स्वामी परमानंद एवं उनके साथ स्वामी प्रभु रमना नन्द, स्वामी गुरु शरना नन्द नूरमहल जालंधर से आए।।