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प्रभु अपने भक्तों का करते है योगक्षेम वहन : साध्वी कालिंदी भारती


जनवक्ता डेस्क बिलासपुर

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से चल रहे सात दिवसीय श्री कृष्ण कथामृत के छठे दिन साध्वी सुश्री कालिंदी भारती जी ने श्री हरि के ही रूप भगवान विट्ठल के अनन्य भक्त संत नामदेव की गाथा सुनाते हुए बताया कि संत नामदेवजी ने विसोबा खेचर को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। विसोबा खेचर का जन्म स्थान पैठण था, जो पंढरपुर से पचास कोस दूर “ओंढ्या नागनाथ” नामक प्राचीन शिव क्षेत्र में हैं। इसी मंदिर में इन्होंने संत शिरोमणि श्री नामदेवजी को ब्रह्मज्ञान की दीक्षा दी और अपना शिष्य बनाया। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और उम्र में उनसे पांच साल बड़े थे। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, संत निवृत्तिनाथ, संत सोपानदेव इनकी बहिन बहिन मुक्ताबाई व अन्य समकालीन संतों के साथ पूरे महाराष्ट्र के साथ उत्तर भारत का भ्रमण कर “अभंग”(भक्ति-गीत) रचे और जनता जनार्दन को समता और प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोक गमन के बाद दूसरे साथी संतों के साथ इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। इन्होंने मराठी के साथ साथ हिन्दी में भी रचनाएँ लिखीं। साध्वी ने बताया कि एक बार नामदेव जी की कुटिया में आग लग गयी और ये प्रेम में मस्त होकर दूसरी ओर की वस्तु भी अग्नि में फैंकते हुए कहने लगे- “स्वामी। आज तो आप लाल-लाल लपटों का रूप बनाए बड़े अच्छे पधारे किन्तु एक ही ओर क्यों दूसरी ओर की इन वस्तुओं ने क्या अपराध किया है, आप इन्हें भी स्वीकार करें।” कुछ देर बाद में आग बुझ गई। सज्जनों इसी प्रकार अगर हम भी ईश्वर परमात्मा से अपना योग क्षेम चाहते हैं तो हमें भी उस परमात्मा को घट में दिखा देने वाले संत गुरु की शरणागत होकर उस परमात्मा के निराकार रूप को देखना होगा। तत्पश्चात हम उस परमात्मा का ध्यान वंदन करेंगे तो वह परमात्मा हमारा प्रत्येक तरह से योग क्षेम वहन करेंगे। इसलिए गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है जो मेरा अनन्य भाव से मेरे तत्व रूप को समझकर मेरा चिंतन करता है। मैं उसका समस्त प्रकार से योग क्षेम वहन करता हूं।

कथा के छठे दिवस इन्द्र डोगरा, सोमा देवी, अभिषेक मिश्रा, सुखदेव सिंह ने प्रभु चरणों में पूजन कर प्रभु आशीष को प्राप्त किया। कथा में बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर सुमधुर भजनों से सजी हुई प्रभु महिमा को श्रवण कर आनन्द को प्राप्त कर स्वयं को धन्य धन्य समझ रहें है।

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