मन में कुछ कर गुजरनें की चाह हो तो परिश्रम के बल पर पत्थरिलीं चट्टानों पर भी मखमली रास्ते बनाये जा सकते है इस ईबारत को सच्च कर दिखाया बिलासपुर जिला के झण्डुता उपमण्डल की बलघाड पंचायत के गांव पराहू के मेहनती प्रगतिशील किसान जगदीश चन्द वर्मा ने
मेहनत के दम पर लिखी कामयाबी की ईबारत
जगदीश वर्मा दिखाता है स्वरोज़गार की राह
40 किलोग्राम से 40 क्विंटल तक पहुंचाया मशरूम उत्पादन
जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
5 मई 1969 को स्व॰ प्रेम दास के घर पैदा हुए जगदीश चन्द वर्मा का बचपन किसी भी दृष्टि से खुशहाल नहीं माना जा सकता। खेती के लिए प्रर्याप्त जमीन होने के बावजूद सिंचाई सुविधा न होने के चलते अभावग्रस्त जीवन जीने को मज़बूर उनके परिवार को पीने के लिए भी कोसों दूर से पानी लाना पडता। पिता प्रेम दास की पगार से घर के खर्चे में आती कठिनाईयों को देखते हुए बालक जगदीश ने परिवार की आय अर्जन करने के लिए वर्षों अनेकों छोटे मोटे कार्य किए लेकिन मन में हमेशा चाह रही कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे न केवल परिवार की आय में ईज़ाफा हो बल्कि उनका और उनके गांव का नाम भी रोशन हो। सीखने और परिश्रम से लक्ष्य प्राप्ति करने की भावना को पंख लगाकर आकाश छूने की उनकी जिद को पूरा करने में वर्ष 2008 में उद्यान विभाग के तत्कालीन विषय विशेषज्ञ एंव वर्तमान उपनिदेशक उद्यान विभाग बिलासपुर विनोद कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जगदीश चन्द को राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केन्द्र सोलन में मशरूम उत्पादन के प्रशिक्षण के लिए भेजा। वर्ष 2009 में आत्मा परियोजना व कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से उन्होंने मात्र 20 बैग से मशरूम उत्पादन कार्य आरम्भ किया। प्रथम वर्ष ही 40 किलोग्राम के मशरूम उत्पादन से उत्साहित जगदीश ने फिर कभी पीछे मुड कर नहीं देखा। आज न केवल उन्होंने अपने मशरूम उत्पादन को अपनी मेहनत के बल और उद्यान विभाग के सहयोग से 40 क्विंटल तक पंहुचाकर जिला के प्रगतिशील किसानों की अग्रणी फेहरिस्त में अपना नाम ही दर्ज करवा लिया है अपितु बीसियों बेरोजगार युवक, युवतियों को स्वरोजगार की राह दिखा कर उन्हें मशरूम उगाने के लिए प्रेरित भी किया है।
वर्ष 2017-18 में जगदीश चन्द की वर्मा मशरूम ईकाई के लिए हिमाचल प्रदेश उद्यान विभाग द्वारा एकीकृत बागवानी मिशन के तहत 20 लाख रूपए के इनके प्रोजेक्ट के लिए 8 लाख रूपए का उपदान भी दिया गया।
जगदीश वर्मा द्वारा उत्पादित मशरूम की इतनी अधिक मांग है कि इन्हें अपनी मशरूम की बिक्री के लिए किसी बडे शहर या जिला मुख्यालय तक भी नहीं जाना पडता। इनकी मशरूम को झण्डुता बाजार, भडोलियां, कलोल, जेजवीं, सुन्हानी, शेर बरोहा आदि की मार्किट में हाथों हाथ खरीद लिया जाता है।
वर्मा मशरूम ईकाइ में वर्तमान में तीन बडें हाॅल्ज में 1725 बैगों में केवल बटन मशरूम को ही उगाया जा रहा है। जगदीश वर्मा अगले वर्ष डिंगरी व ब्राउन मशरूम को भी उगाने की योजना बना रहे है। जबकि औषधि के रूप में प्रयुक्त की जाने वाली सबसे मंहगीं स्टाके मशरूम उगाने की विधि व मार्किटिंग ज्ञान के लिए वह चैधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से प्रशिक्षण पाने के लिए सम्पर्क साधे है।
जगदीश वर्मा मशरूम उत्पादन सीजन में 12 से 18 घण्टे तक निरन्तर अथाह परिश्रम करते है। रात्रि 10 बजे से मशरूम को बैग से काटने का कार्य आरम्भ होता है और रात 1 बजे से धुलाई व सुखाई की प्रक्रिया के पश्चात् प्रातः 5 बजे से पैकिंग आरम्भ की जाती है और फिर सुबह 7.30 बजे से 9 बजे तक मशरूम को मार्किट में पहुचा दिया जाता है। इस कार्य में उनकी पत्नी बीना देवी बेटा आशीष, रोहित व बेटी नेहा के अतिरिक्त उनके भाई का परिवार भी इस कार्य में हाथ बटाता है। जबकि इस व्यवसाय के माध्यम से वह गांव की महिलाओं को भी रोज़गार देते है। जगदीश चन्द वर्मा ने मशरूम के 40 क्विंटल उत्पाद को बढाकर 50 क्विंटल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
जगदीश चन्द वर्मा का सपना है कि बिलासपुर जिला की पहचान मशरूम नगरी के नाम से हो इसके लिए वह जगह-जगह जाकर युवाओं, महिला मण्डलों और स्वंय सहायता समूहों को मशरूम उगाने की विधि ही बताते है बल्कि उन्हें कम्पोस्ट भी उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त केसिंग बनाने इत्यादि की भी जानकारियां देते है। मानव सेवा संस्थान से जुडे धौन काठी, पंजगाईं व बरमाणा के स्वंय सहायता समूहों की बीसिंयों महिलाएं इनकी प्रेरणा से मशरूम उत्पादन कर रही है और अपने परिवार की आर्थिकी बढाने में योगदान दे रही है।
जगदीश वर्मा अपनी पूरी मशरूम ईकाइ को सौर ऊर्जा से संचालित करके ऊर्जा की बचत करने के भी पक्षधर है।
जगदीश चन्द वर्मा का कथन है कि आज के परिवेश में आवश्यक है कि युवा पीढी सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बदले सरकार द्वारा स्वरोजगार के क्षेत्र में उपलब्ध करवाए जा रहे संसाधनों का लाभ उठाकर अपना जीवन स्तर उपर उठाएं।