पतंजलि योगपीठ भी अपनाएगा प्राकृतिक खेती
जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
राज्यपाल आचार्य देवव्रत की पहल पर पतंजलि ने यह निर्णय लिया है कि पतंजलि योगपीठ भी अब कम लागत प्राकृतिक खेती को अपनाएगा। पतंजलि से आचार्य बालकृष्ण अपनी टीम के साथ गुरुकुल के कम लागत प्राकृतिक कृषि फार्म के अवलोकन के लिए पहुंचे और फार्म पर गन्ना, गेंहू, चना सहित हरी सब्जियों की फसलों का बारीकी से अध्ययन किया। राज्यपाल ने इस अवसर पर प्राकृतिक खेती अपनाने पर बल दिया। इस दौरान आचार्य बालकृष्ण ने विभिन्न फसलों पर आने वाली लागत और मुनाफे के बारे में आचार्य देवव्रत व फार्म मैनेजर गुरदीप सिंह से विस्तृत चर्चा की।
गुरुकुल कुरुक्षेत्र के 200 एकड़ कृषि फार्म का जिक्र करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि इस फार्म में प्राकृतिक कृषि को पूर्णरूप से अपनाया गया है। इसके परिणामस्वरूप गुरुकुल कुरुक्षेत्र के फार्म में गन्ने का उत्पादन 400 से 500 क्विंटल हुआ जबकि अन्यों का 200 से 250 क्विंटल तक ही रहा। इसी प्रकार धान का उत्पादन अन्यों के 8 से 9 क्विंटल के मुकाबले गुरुकुल कुरुक्षेत्र फार्म में 12 क्विंटल तक दर्ज किया गया। उन्होंने कहा कि गुरुकुल कृषि फार्म देश का मॉडल कृषि फार्म बनकर उभरा है, जिसे देशभर से किसान देखने आते हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि में मल्चिंग के माध्यम से खरपतवार को भी समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल कृषि फार्म में पूर्व में रासायनिक कृषि को अपनाने से जमीन बंजर होने की कगार पर पहुंच गई थी और जांच में यहाँ की मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन 0.3 तक पहुंच गया था। जबसे प्राकृतिक कृषि पद्धति को अपनाया गया, यही ऑर्गेनिक कार्बन बढ़कर 0.8 से 0.9 तक चला गया जो कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी चौंकाने वाला तथ्य है।
उन्होंने कहा कि किसानों को बचाने का इससे आसान रास्ता और कोई नहीं हो सकता। राज्यपाल ने खेतों में फसल चक्र को भी अपनाने पर बल देते हुए कहा कि एक ही फसल उत्पादन से पोषक तत्त्व कम हो जाते हैं, जिससे उत्पादन घटता है जबकि फसल चक्र को अपनाने से इस पोषक तत्त्वों की आपूर्ति होती रहती है।
आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि उनके पास अलग-अलग स्थानों पर लगभग 200 एकड़ की कृषि योग्य भूमि है, जिसपर वर्तमान में जैविक कृषि की जा रही है। अब आचार्य देवव्रत की प्रेरणा से इस भूमि पर कम लागत प्राकृतिक खेती की जाएगी। कम लागत प्राकृतिक खेती को किसानों तक पहुंचाने के आचार्य देवव्रत के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने इस अभियान को और मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए आचार्य के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का संकल्प लिया।