जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला व जिला प्रशासन के सयुंक्त तत्वाधान से पांच दिनों तक चलने वाले जन जातिय उत्सव का उपायुक्त विवेक भाटिया व एनजेडसीसी. के निदेशक प्रो. सौभाग्य वर्धन ने दीप प्रज्वल्लित कर विधिवत रूप से शुभारंभ किया।
जन जातिय उत्सव की प्रथम सांस्कृतिक संध्या में तेंलगाना, मध्य प्रदेश, जम्मू व कश्मीर, ओडिसा, त्रिपूरा, गुजरात इत्यादि राज्यों के लोक कलाकारों ने अपने राज्य की मौलिक प्रस्तुतियों से न केवल दर्शकों का भरपूर मनोरंजन ही किया अपितु तीन घण्टे से भी अधिक अवधि तक दर्शकों को लुहणू स्थित पडांल में अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से सम्मोहित करके झूमने पर मज़बूर कर दिया।
तेंलगाना की प्रस्तुति में कलारनट और गायन के सुन्दर सामंजस्य में ढोल नगाडे पर थिरकते कलाकरों ने जहां अपनी प्राचीन नृत्य परम्परा के प्रभावी दर्शन करवाए वहीं मध्य प्रदेश के नृत्य में उपासना की भावना का सजीव प्रदर्शन लोक कलाकरों की कला परिपक्वता का सुन्दर नमूना था। सब पे कृपा रखियों मां की स्वर लहरियों संग नगाडा, ढोलक और डफली का प्रभावी मिश्रण और त्रिशुल मयूर पखं लिए महिला व पुरूष नृतकों की नृत्य भंगिमाओं की एकरूपता दर्शकों में भी भक्ति भावना जागृत करने में सफल रही वहीं दूसरी नृत्य प्रस्तुती में लोक कलाकारों ने शक्ति माता की अराधना के लिए किए जाने वाले जवारा नृत्य में बांसुरी की मधुर धुन के साथ लोक गायिका की स्वर लहरियों में थिरकते पुरूष व महिला कलाकारों ने पंडाल में बैठे दर्शको को झूमने पर मजबूर कर दिया।
कश्मीर की वादियों का आभास दिलाने के लिए जम्मू व कश्मीर के कलाकारों ने कोई कसर शेष नहीं छोडी “उड-उड कुंज मेरी कन पर बैठी हार न करि गई चोर-उड जा औ कुंजडिये के गायन की सुरीली तान पर जम्मू व कश्मीर की महिला कलाकारों के काले सुनहरी परिधान में प्रभावी नृत्य की विविधिता के आकर्षण से आविभूत होकर लुहणू मैदान में घुमते लोग जन जातिय उत्सव पंडाल में अपने लिए स्थान ढूढतें नजर आए। लोक कलाकारों ने अपनी दूसरी प्रस्तुती में सुरीली आवाज में बगदी आई रावी, बिच रूड़दी आई टोकरी, ओढ़नी दा पल्ला परदेशियां दा अल्हा, पर झूमती कश्मीर की नवयौवनाओं ने कश्मीर की पहाड़ियों में चरवाहों के परम्परागत जीवनशैली की अनूठी पेशकश से लोगों के हृदय में अपनी जगह बनाई वहीं अपनी तीसरी प्रस्तुती में वरिष्ठ मंजे हुए कलाकारों की प्रस्तुती सूफी नृत्य से प्रभावित थी जिसमें वर्ष न होने पर ईवादत के भाव को कलाकारों ने बाखूवी प्रस्तुत किया।
ओडिसा का जन जातिय नृत्य में मार्सल आर्ट की प्राचीन परम्परा का पाईका नृत्य का अत्यन्त प्रभावी प्रदर्शन किया। आत्मरक्षा के लिए शारीरिक ऊर्जा और नर्तकों का फुर्तीलापन भरपूर तालियां बटोरने में सफल रहा। नगाडे, बडे़ ढोल व थाली की ताल पर आकर्षक परिधान में विभिन्न हथियारों के करतबों के संग आकर्षक पीरामिड/मानव श्रृखंला निर्मित करते कलाकारों का आपसी अनूठा ताल-मेल प्रथम सांस्कृतिक संध्या की प्रस्तुतियों में अग्रणी प्रस्तुती के रूप में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा। कलाकारों ने दूसरी प्रस्तुती में संबलपुरी नृत्य प्रस्तुत किया जिसमें मन्नत पूरी होने पर महिलाएं अपनी ईष्ट देवी की उपासना नृत्य में झूमते हुए करती हैं। नई फसल के आने की खुशी में भगवान को अन्न अर्पित किए जाने के अवसर पर हर्षोल्लास के आनंदमय भाव को त्रिपुरा के महिला व पुरूषों के युगल नृत्य ने त्रिपुरा के ग्रामीण परिवेश का सजीव प्रदर्शन किया। ढोल व गायन की स्वर लहरियों में नर्तकों ने अत्यंत ऊर्जा से भरा हुआ लोक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों से तालियां भरपूर बटोरी। गुजरात राज्य में बसे दक्षिण अफ्रीका के वंशजों द्वारा सिधी गोमा नृत्य ढोल, शंख और गायन के साथ-साथ आदिवासी वेशभूषा( मयूर पंख, मोतियों की माला) रंगे हुए चेहरों की आकर्षक भाव-भंगिमाओं के साथ आनंदभाव में नृत्य करते पुरूष नर्तकों ने पीरबाबा की अराधना का रोमांचक प्रस्तुतीकरण कर खूब वाह-वाही लूटी।