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वीरभद्र सिंह और सुखराम के मिलन से भाजपा की नींद हराम

Byjanadmin

Mar 31, 2019

मंडी सीट दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न

दोनों ही नेताओं के कार्यकर्ताओं और हितेषियों मं भारी उत्साह व हर्ष की लहर

जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
मंडी संसदीय सीट पर हिमाचल प्रदेश की राजनीति के दो भीष्म पितामह वीरभद्रसिंह और पंडित सुखराम के बीच कांग्रेस हाईकमान द्वारा , इस सीट और क्षेत्र की जनता के हित में ,समझौता करा देने के बाद जहां इस सारे क्षेत्र में दोनों ही नेताओं के कार्यकर्ताओं और उनके हितेषियों मं भारी उत्साह व हर्ष की लहर दौड़ गई है , वहीं कांग्रेस हाईकमान के इस “ मास्टर स्ट्रोक “ के कारण भाजपा व इसके मुख्यमंत्री की नींद भी निश्चित रूप से ही हराम हो गई है , क्यूँ कि फील्ड से जुड़े अधिकांश भाजपाइयों द्वारा इस सीट पर अपने आप को बनाए रखने का संशय पैदा हो गया है |

अपने पिछले सारे मतभेद , कार्यकलापों और उपलब्धियों और हानियों को भुला कर इक्क्ठे मिल कर नया इतिहास रचने को अग्रसर

हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर कड़ी नजर रखने वाले कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह सही है कि पिछले प्राय: कोई बीस वर्ष से हिमाचल प्रदेश के इतने बड़े यह दोनों दिग्गज नेता अपने -अपने कार्य क्षेत्र में , एक दूसरे के धुरंदर विरोधी रहते हुए नए नये कीर्तिमान स्थापित करते रहे हैं और इन दोनों में अधिकांश बातों में 36 का आंकड़ा रहा है | किन्तु इतिहास गवाह है कि बड़े बड़े युद्ध लड़ने के बाद भी एक टेबल पर बैठ कर अपने पिछले सारे मतभेद , कार्यकलापों और उपलब्धियों और हानियों को भुला कर इक्क्ठे मिल कर नया इतिहास रचने को अग्रसर हुए हैं और जिस प्रकार कांग्रेस हाईकमान के कुछ नेताओं के सुझाव पर पंडित सुखराम कांग्रेस टिकट प्रत्याशी अपने पौत्र आश्रय शर्मा को टिकट प्राप्त करने के बाद वीरभद्र सिंह के आवास पर उपस्थित हुए और जिस प्रकार उनके वहाँ पहुँचते ही वीरभद्र सिंह द्वारा भी अपने सारे पिछले गिले- शिकवे भुला कर उनका गले लगा कर पूरे दिल मन से स्वागत ,सम्मान और अभिनंदन किया, वह अपने आप में हिमाचल प्रदेश के राजनैतिक इतिहास कि एक बहुत बड़ी घटना है | जिसे हिमाचल कांग्रेस पार्टी के विरोध पक्षीय नेता मुकेश अग्निहोत्री सहित कितने ही वीरभद्र सिंह समर्थकों ने तुरंत अपने कैमरे में कैद कर लिया , जो भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि इसके बाहर भी विरोधी नेताओं के मिलन के प्रतीक के रूप में मीडिया में चर्चित और प्रशन्शित हुए |

मुख्यमंत्री ने पूर्व मित्रों ,परिजनों और आरएसएस से संबन्धित योग्य अथवा अयोग्य नेताओं को सरकारी लाभकारी पदों पर नियुक्तियाँ देकर अपने मुख्यमंत्रित्व का पूरा लाभ उठाया

राजनैतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि मंडी जिला जो मुख्यमंत्री का जिला और उनका गृह क्षेत्र है , उसमें इस बीच उन्होने अपने पद का पूरा लाभ उठाते हुए निश्चित रूप से अपने पूर्व मित्रों ,परिजनों और आरएसएस से संबन्धित योग्य अथवा अयोग्य नेताओं को सरकारी लाभकारी पदों पर नियुक्तियाँ देकर अपने मुख्यमंत्रित्व का पूरा लाभ उठाया है | किन्तु इसके साथ ही इन नियुक्तियों के कारण भाजपा में भी आंतरिक स्तर पर दो विरोधी गुट स्पष्ट रूप से आरएसएस और गैर–आरएसएस के रूप में सामने आए हैं | क्यूँ कि आरंभ से ही भाजपा से जुड़े हुए पार्टी कार्यकर्ता इस बात से बेचैन हैं कि यदि भाजपा की सरकार बनने पर केवल मात्र उसके लाभों से आरएसएस को ही लाभान्वित किया जाना था, तो वे इस पार्टी में अब तक वीरभद्र सिंह व कांग्रेस सरकारों के धक्के क्यूँ खाते रहे और भाजपा से जुड़े रहने के कारण ही वे विभिन्न बहानों से तंग व प्रताड़ित क्यूँ होते रहे हैं ?

भाजपा नेताओं का मानना है कि वरिष्ठ नेताओं को जनता में अवहेलित किया

इन मे से कितने ही भाजपा नेताओं का मानना है कि मुख्यमंत्री ने केवल मात्र आरएसएस लोगों को ही अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ देकर वरिष्ठ भाजपा नेताओं को जनता में अवहेलित किया है , जिस स्थिति को वे किसी भी रूप में सहन नहीं कर पा रहे हैं| कुछ पर्यवेक्षकों को लगता है कि यह स्थिति निश्चित रूप से भाजपा के भीतर नीति विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है | जबकि यद्यपि यह कहना कठिन होगा कि भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप शर्मा के चुनाव पर किस कारण कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है |
आम लोग तो कहते हैं कि रामस्वरूप शर्मा भी आरएसएस से संबन्धित है और स्वयं मुख्यमंत्री भी इस संस्था के प्रयासों से ही बढ़े- पले हैं और एकाएक अपने विधान सभा क्षेत्र से छ्लांग लगा कर इसी एक कारण से , शिमला में प्रतिष्ठापित कर दिये गए हैं | जिस से भाजपा का गैर आरएसएस वर्ग अब पार्टी में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देख रहा है |
राजनैतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि इसीलिए मंडी संसदीय सीट पर दोबारा राम स्वरूप शर्मा को विजयश्री प्राप्त करने से रोकने के लिए जहां वीरभद्रसिंह व सुखराम अपने अपने स्तर पर भाजपा के लिए परेशानियाँ पैदा करेंगे वहीं रुष्ट बैठे नेता भी अपने अपने स्तर पर चुनाव में नकारात्मक रोल अदा करने के कारण संदेह पैदा हो गया है ताकि उनकी अवहेलना अथवा अनदेखी का मजा चखाया जा सके |
पर्यवेक्षक कहते हैं कि यह सही है कि भाजपा नेता पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह के समझौते के बावजूद भी , यह प्रचार करते हुए आत्म संतोष व्यक्त कर रहे हैं कि वीरभद्र सिंह कभी भी पंडित सुखराम के पौत्र को पूरे मन से समर्थन देकर विजयी बनाने में सक्रिय नहीं हो सकते | किन्तु ऐसे लोग भूल रहे हैं कि जहां हाईकमान ने प्रदेश की चारों सीटों पर विजय पाने के लिए चुनाव की कमान संभाली है वहीं मंडी सीट पर वीरभद्र सिंह ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर यह कहा बताते हैं कि आश्रय शर्मा भी उनके लिए विक्रमादित्य की तरह ही है और वे उसकी विजय सुनिश्चित करने के लिए सुखराम के साथ दिन रात एक कर देंगे |

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