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दोनों ही प्रमुख दल “ आया राम –गया राम “ की नीति को प्राथमिकता देकर सत्ता में आने का भिड़ा रहे हैं जुगाड़

Byjanadmin

Apr 6, 2019

मंडी में सुखराम के राजनैतिक कौशल के आगे सभी बौने

राजनीतिक संवाददाता, जनवक्ता बिलासपुर
हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रमुख कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के “ आया राम – गया राम “ के वक्तव्य पर खुश होते हुए इसे भाजपा के पक्ष में किया गया चुनावी प्रचार बताने वाले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर यह भूल रहे हैं कि उनकी अपनी पार्टी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेत्रत्व में सारे देश भर में विभिन्न राज्यों में भाजपा द्वारा खड़े किए जा रहे कम से कम 33 प्रतिशत ऐसे उम्मीदवार हैं , जो अभी कुछ दिन पहले किसी अन्य भाजपा विरोधी दल में थे और भाजपा उम्मीदवारों को चुनाव में हरा कर जीतते रहे हैं | किन्तु उन्हें चुनाव के ऐनमौके पर भाजपा में शामिल करके उनकी इच्छा के चुनाव क्षेत्र से टिकट देकर उसी “ आया राम –गया राम “ की नीति को प्राथमिकता देते हुए सत्ता में आने का जुगाड़ किया जा रहा है , जिसकी जयराम ठाकुर अपनी चुनावी सभाओं में निंदा –आलोचना कर रहे हैं |
यह बात यहाँ राजनैतिक पर्यवेक्षकों ने जयराम ठाकुर के पिछले कल मंडी के देवधार और नाचन की अपनी जन सभाओं में कहे शब्दों को हास्यास्पद बताते हुए कही | इनका कहना था कि आश्चर्य है कि जिस भाजपा के इस चुनाव में 33 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार “ आया राम –गया राम “ की नीति के अधीन उम्मीदवार बनाए गए हैं उसी पार्टी के मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी की राजनीति की सरेआम आलोचना कर रहे हैं |
इन राजनैतिक पर्यवेक्षकों का कहना था कि आया राम –गया राम की नीति भारतीय चुनावी राजनीति का एक आवश्यक अंग बन गई है और कोई भी ऐसा राजनैतिक दल नहीं है ,जिसने इस नीति का सहारा न लिया हो और अपने आप को सत्ता में लाने के लालच में इस नीति को न अपनाया हो | जबकि इसी नीति के आधार पर पिछले चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनाव में तीन राज्यों में भाजपा ने इसी नीति पर अमल करके भारी अल्प संख्या में होते हुए भी जबरदस्ती सरकारें बनाई और वर्ष 2014 के चुनाव में भी बीसियों “ आया रामों –गया रामों “ को टिकट देकर मोदी और शाह को सत्ता सुख भोगने का सुअवसर दिया |
पर्यवेक्षक मानते हैं कि वीरभद्र सिंह के “ आया राम –गया राम “ संबंधी विचार केवल मात्र सुखराम के विषय में उनके व्यक्तिगत विचार तब तक हैं जब तक कांग्रेस हाईकमान उनकी कितनी ही उल्टी सीधी अपने ही नेत्रत्व को सुनिश्चित बनाने के लिए की जाती रही मांगो और ब्लैक मेल को झेलती हैं | किन्तु जिस दिन भी कांग्रेस हाई कमान उनकी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं और इंच्छाओं को दरकिनार करेगी,उसी दिन वे भी इसी “ आया राम –गया राम “ की चुनावी रणनीति पर अमल करने को या फिर राजनीति से सन्यास लेने को विवश होंगे |
पर्यवेक्षक कहते हैं कि वास्तव में अनिल शर्मा मुख्यमंत्री और भाजपा दोनों के लिए सुखराम ने गले की हड्डी बना दिया है | जबकि दोनों ही पक्ष “ पहले आप – पहले आप “ कार्यवाही करने के लिए एक दूसरे को उकसा रहे हैं ताकि ऐसी किसी भी कार्यवाही के कानूनी परिणामों में एक दूसरे को उलझाया जा सके |हालांकि दोनों ही पक्ष अपने – अपने स्थान पर बिलकुल दृढ़ और वास्तविकता पर आधारित तथ्यों पर ही अमल कर रहे हैं | पर्यवेक्षक मानते हैं कि पंडित सुखराम जैसे राजनीति के भीष्म पितामह के सामने भाजपा के राज्य के वरिष्ठतम नेता भी राजनीति में बौने हैं और वे राजनीति के रण कौशल में उनका किसी भी स्तर पर मुक़ाबला नहीं कर सकते हैं ,जिस तथ्य को पिछले राजनैतिक इतिहास ने प्रमाणित भी किया है |

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