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जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
शिमला के प्रसिद्ध युवा पारंपरिक गायक ‘जोऊटा-बढ़ाल फेम’ चिराग ज्योति मजटा की एल्बम ‘गाथा’ का दूसरा गीत ‘ज़ाथू टियारु-देवता नागेश्वर धौंलू’ कल रिलीज़ कर दिया गया | रोहरू-जुब्बल के गाँव शील और झड़ग से सम्बंधित ये लगभग 3 शताब्दियों पुराना गीत चिराग की वेबसाइट www.cfolk.in से डाउनलोड करने के साथ-साथ इनके यू टियूब चैनल पर देखा जा सकता है | इसका संगीत विख्यात संगीत निर्देशक सुरेंदर नेगी ने दिया है और संगीत में पारंपरिक वाद्यों का प्रयोग किया गया है | पेशे से हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में बतौर वकील और भूतपूर्व राज्य-स्तरीय क्रिकेट खिलाड़ी रहे चिराग मूलतः रोहरू के करासा गाँव के हैं और समय-समय पर अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से अपनी उपस्थिति लुप्त होते पारंपरिक महासुवी गीत और शैलियों के दौर में करवाते रहते हैं | गिरते संगीत के स्तर पर चिंतित चिराग का कहना है कि पहाड़ी बोली का दैनिक बोलचाल में कम होता चला जाना,अपनी संस्कृति से दूर भागना और पाश्चात्य संस्कृति का भौतिकवादी अनुसरण करना इसका मुख्य कारण है | और बतौर गायक उनका मानना है कि कलाकार समाज का दर्पण होता है | किन्तु दुःख यह देखकर होता है कि आज कल के ज़्यादातर गायक अपने गीतों का पश्चात्याकरण कर फूहड़ता और हिट होने की अंधी दौड़ दौड़ रहे हैं | जिस दौड़ में असली पहाड़ी संस्कृति लुप्त होती दिख रही है | अपना अभी तक का पूरा जीवन शहरी जीवन शैली में व्यतीत करने वाले इस युवा गायक की प्रेरणा इनके काईना गाँव के नाना-नानी हैं | सेवानिवृत योग प्राध्यापक पिता प्रेम ज्योति और नर्स माता आशा ज्योति के पुत्र चिराग ने इस गीत के सन्दर्भ में बताया कि इस गीत को वीडियो सहित तैयार करने में उन्हें लगभग 3-4 वर्षों का समय लग गया | गेहूं के पीछे का यह विवाद आगे चलकर देव-प्रकोप में तब्दील हो गया और देवता नागेश्वर को भला-बुरा कहने वाले दो सगे भाई ज़ाथू-टियारु का समस्त वंश ही देवता नागेश्वर और उनके बड़े भाई देवता धौंलू ने समाप्त ही कर दिया | इससे पूर्व चिराग का ‘जोऊटा-बढ़ाल का बोइर’, ‘दुन्दी’ , ‘खूंद कनाल का बोइर ’ , ‘ज़ांज़ी’ , ‘मैस्ती गरीबी’ , ‘हांडौ मिंया टिकमेया’ इत्यादि जैसे सुपरहिट गीत गा चुके चिराग ने गायन शौक के तौर पर ही चुना है और लुप्त होती पहाड़ी संस्कृति और परम्पराओं को सजीव करने के लिए यह युवा प्रेरणा अग्रसर और आशावान है |

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