जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
संविधान निर्माता डा. भीम राव अंबडेकर की जयंती तथा महा पंडित राहुल सांस्कृत्यायन की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में प्रेस क्लब बिलासपुर में साहित्यक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में सीआरपीएफ के सेवानिवृत्त कमांडेट सुरेंद्र शर्मा ने बतौर मुख्यतिथि शिरकत की, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. नीरज कंवर ने की। व्यापार मंडल के महामंत्री सुरेंद्र गुप्ता विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। सर्वप्रथम संगोष्ठी में दिवंगत हांस्य कवि प्रदीप चौबे के अचानक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। मंच का संचालन रविंद्र भट्टा ने किया। प्रदीप गुप्ता ने डा. डा. भीम राव अंबडेकर तथ रत्न चंद निर्जर ने महा पंडित राहुल सांस्कृत्यायन के बारे पत्र वाचन किया। निर्झर ने कहा कि राहुल जी मात्र आठवीं तक पढ़े थे, लेकिन उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखी तथा कई विश्व विद्यालयों में बतौर प्राध्यापक कार्यरत रहे। इसके बाद सुशील पुंडीर ने इलेक्शना रे टैम आईगया नेते लेंगे घेरे-घेरे घुमने… अश्वनी सुहील ने कदर करनी तां जीते जी करें… कुलदीप चंदेल ने गमलों में उगे नेता सर्जिकल स्ट्राइक के सबुत मांग रहे हैं, एयर स्ट्राइक को बक्वाश बता रहे हैं…, रामपाल डोगरा ने संस्कारित परिवार…, नरेंद्र गुप्ता ने मैं जलियांवाला बाग हूं…, अरूण डोगरा ने तुम खुद कुछ क्यों नहीं लिखती दूसरों का कॉपी किया हुआ पढ़ना मुझे अच्छा नहीं लगता…..जीत राम सुमन ने धौलरा रे मंदरा में वजिये के जाई औणा, सुखना रा रो मंदरा चढ़ाई औणा… डा. प्रशांत आचार्य ने न उस डगर तेरे पांवों पड़े, जहां नानक और अली बंटे, ऐ हिंद तुम तभी महान है…, डा. नीरज कंवर ने बेटियों के नाम गजल सुनाई, जिसके बोल थे अंधेरों में उजालों जैसी प्यारी सी बेटियां जैसे गुलदस्ते में रखे गुलाब हो तथा एक रोज मेरी पांच साल की बेटा ने पुछा पापा म मा तो घर में हैं, आप किसके इंतजार में बैठे हैं… शिवपाल गर्ग ने लगता था यह जिंदगी रूक गई है, जो देखा तु हें तो सांसे चलने लगी हैं… डा. जय नारायण कश्यप ने जुझते रहो जुझना जिंदगी है, मुश्किलें हैं, हल भी यहीं है…, सुखराम आजाद ने कुछ असरार सुनाएं जैसे बड़े बेआवरू होकर तु हारें कुचे से हम निकले… , रत्न चंद निर्झर ने मशहुर हांस्य कवि प्रदीप चौबे की कविता मेरी शव यात्रा सुनाई… व रविंद्र भट्टा ने पवित्र प्रेम का चित्र चरित्रण किया…। अंत में मुख्यतिथि सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि प्रेस क्लब में सजने वाली मासिक साहित्यक संगोष्ठीयों में विभिन्न साहित्यकार अपनी रंचनाओं के माध्यम से समाज की नब्ज को टटोलते हैं। उन्होंने फरमाया एक भुली हुई कहानी फिर याद आई, चांद अगड़ाई लेने लगा, चांदनी मुस्कारने लगी।