भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर द्वारा मासिक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन
ज़िला भाषा अधिकारी श्रीमती नीलम चन्देल ने की कार्यक्रम की अध्यक्षता
मंच का संचालन रविन्द्र भट्टा द्वारा किया गया
जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर द्वारा संस्कृति भवन के बैठक कक्ष में मासिक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ज़िला भाषा अधिकारी श्रीमती नीलम चन्देल ने की तथा मंच का संचालन रविन्द्र भट्टा द्वारा किया गया। संगोष्ठी के आरम्भ में सभी सहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती की ज्योति प्रज्जवलित की गई। कार्यक्रम के आरम्भ में जीत राम सुमन द्वारा मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की गई। इसके उपरान्त अरूण डोगरा रीतू ने रचना प्रस्तुत की जिसकी पंक्तियां थीं- दिन प्रतिदिन आकाश में मंडराते गिद्ध यही कर रहे हैं सिद्ध जरूर कहीं लहू बिखरा होगा कहीं। जीतराम सुमन की रचना का शीर्षक था- ‘दुनिया के रिश्ते अजीब हो गए- इस दुनियां के रिश्ते, देखो कितने अजीब हो गए, लहू के रिश्ते आज, अपने ही लहू के प्यासे हो गए‘। डॉ0 अनेक राम सांख्यान की ‘रचना की पंक्तियां थीं ‘बफादार इतना बदनाम क्यों होता है कि जिसका मन करे कह दे कुत्ता है । एस. आर. आजाद की रचना की पंक्तियां थीं- किसरी – किसरी गल करिए भई कुण – कुण इत्थी ऊत हुई गया, इक्की दंू री गल्ल नी इत्थी आवा ही सारा ऊत हुई गया। सुरेन्द्र मिन्हास ने ‘‘ हुनकी नुलाड़ी ‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की, पंक्तियां थीं- गेटा टपी देख्या मजमां भारी, कुरसियां पर लोक करी करो नन्द, स्टेजा पर नचदी गांवा री जणानां, था कहलूरी उत्सवा रा रूप प्रचण्ड। रविन्द्र भटटा ने ‘‘ बिना जल की मछली सी फडफड़ाती रही, दो दिनों में ही सिकुड़कर कर हाफ हो गई। प्रदीप गुप्ता ने ‘‘कन्या भ्रूण का चीत्कार‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की, पंक्तियां थीं-मां मैं भी आना चाहती हूं पृथ्वी पर जीवन की किलकारियंं की तरह। गौरव शर्मा ने ‘‘ आज के आदमी की कहानी‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की पक्तियां थी- सांप भागकर निकल गए जब आदमी, आदमी को काटने लगे, अब कुत्ते भी क्या करें जब तलबे आदमी चाटने लगे। इसके अतिरिक्त हेमा ठाकुर ने ‘ अन्तराल तेरी यही कहानी‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त नेहा देवी, नेहा कुमारी ने भी रचनाएं प्रस्तुत की। इस अवसर पर ज़िला भाषा अधिकारी ने सभी साहित्यकारांे का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि कवि और लेखक समाज को सकारात्मकता का भाव देते है जिससें समाज में संस्कृति ,संस्कार व नैतिक मूल्यों का समावेश होता है ।