उम्र भर गरीबों और जरुरतमंदों की सहायता करते रहे डॉ॰ यशवंत सिंह परमार
डॉ॰ यशवंत सिंह परमार जी को जनवक्ता परिवार की ओर से श्रद्धांजलि
अरूण डोगरा रीतू, मुख्य संपादक
डॉ यशवंत जी का जन्म हिमाचल के सिरमौर जिला में बसे चनालग नामक गांव में 4 अगस्त 1906 को हुआ था। 1926 में 20 वर्ष की आयु में उन्होंने लाहौर से फोरमैन क्रिस्चियन काॅलेज से बीए किया। 1928 में कैनिग काॅलेज लखनऊ से एम ए करने के बाद उन्होंने वहीं से एल एल बी की। 1929-30 तक वे थियोसोफिकल सोसाइटी के मेंबर रहे। डॉ परमार 1930 से 1937 तक सब-जज और मैजिस्ट्रेट रहे।
डाॅ परमार 1937 से 1941 तक जिला सैशन जज रहे
1937 से 1941 तक डाॅ परमार जिला और सैशन जज रहे। इसी दौरान उन्होंने 1944 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से सामाजिक शास्त्र में पी एच डी की पढाई पूरी की। वे 1943-46 तक सिरमौर एसोसिएशन के सचिव रहे। उसके बाद 1946-47 तक वे हिमाचल स्टेट काउंसिल के प्रधान रहे। 1947 से 1948 तक डाॅ परमार ने आल इन्डिया पीपुलस कान्फ्रेस के और सुकेत आन्दोलन में संचालक के तौर पर काम किया। उन्हीं के अथक प्रयासों से 15 अप्रैल 1948 को 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश का निर्माण किया गया।
परमार 1948 से 1952 तक हिमाचल प्रदेश चीफ एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य सचिव रहे
हिमाचल प्रदेश बनने के बाद 1948 से 1952 तक डाॅ यशवंत परमार हिमाचल प्रदेश चीफ एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य सचिव रहे। इसके साथ ही 1948 से 1964 तक हिमाचल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। 1952 में हुए पहले चुनाव में वे हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए और उनका कार्यकाल 1956 तक रहा। 1957 में वे सांसद बनकर संसद पहुंचे। उसके बाद फिर से हुए चुनावों में 1963 से 24 जनवरी 1977 तक मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश को उन्नति की ओर अग्रसर किया। उनके इसी कार्यकाल के दौरान 25 जनवरी 1971 को हिमाचल केंद्र शासित राज्य से पूर्ण राज्य बन पाया।
लगभग 3 दशकों तक कुशल प्रशासक
लगभग 3 दशकों तक कुशल प्रशासक के रूप में जन-जन की भावनाओं और संवेदनाओं को समझते हुए उन्होंने प्रगति पथ पर अग्रसर होते हुए हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए नई दिशाएं प्रस्तुत की। उनका सारा जीवन प्रदेश की जनता के लिए समर्पित रहा वे उम्र भर गरीबों और जरुरतमंदों की सहायता करते रहे। हालांकि उनको अपनी ही पार्टी के कुछ लोगों की आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।
शोध आधारित पुस्तकें भी लिखी
डॉ॰ परमार ने अपने जीवनकाल में पालियेन्डरी इन द हिमालयाज, हिमाचल पालियेन्डरी इटस शेप एण्ड स्टेटस, हिमाचल प्रदेश केस फार स्टेटहुड और हिमाचल प्रदे्श एरिया एण्ड लेगुएजिज नामक शोध आधारित पुस्तकें भी लिखी। डॉ॰ परमार 2 मई 1981 को स्वर्ग सिधार गए। उनके सम्मान 1985 में नौणी जिला सोलन में डाॅ यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। इस समय हिमाचल और देश को ऐसे ही जुझारू, कर्मठ और जनकल्याणकारी नेताओं की बहुत जरूरत है।