रामसिंह,
राजनीतिक संवाददाता
जनवक्ता बिलासपुर
इस संसदीय चुनाव में मंडी संसदीय सीट को अपने भविष्य का दारोमदार मान कर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एक बहुत बड़ा जुआ खेल रहे हैं और यह सत्य भी है कि यदि कांग्रेस पार्टी में पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह जैसे दो राजनैतिक महारथियों की लीडरशिप में इस सीट पर विजय प्राप्त कर ली तो इससे निश्चित ही जयराम ठाकुर के राजनैतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा और उन्होने भाजपा हाई कमान के पास चाहे जितनी मर्जी डींगें हांकी हो , वह सभी असत्य प्रमाणित होगी | यह विचार आज यहाँ मंडी क्षेत्र का चुनावी सर्वेक्षण करके लौटे दो राजनैतिक पर्यवेक्षकों ने प्रकट करते हुए कहा कि इस चुनाव में जहां जयराम ठाकुर का व्यक्तिगत आस्तित्व खतरे में है वहीं सुखराम और वीरभद्र सिंह दोनों कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का मान –सम्मान भी दांव पर लगा है क्यूँ कि यदि कांग्रेस यहाँ हारती है तो न केवल सुखराम अपने जीवन की अंतिम लड़ाई हार जायेंगे वहीं वीरभद्र सिंह का अपना महत्व भी एक राज नेता के रूप में समाप्त हो जाएगा और दो राजनैतिक महारथियों की चुनौती के सामने जयराम ठाकुर प्रदेश में भाजपा के सबसे सशक्त नेता के रूप में उभर कर सामने आएंगे | इन पर्यवेक्षकों का कहना है कि वास्तव में मंडी सीट पर चुनावी युद्ध में जहां जयराम ठाकुर कांग्रेस के नेता सुखराम परिवार पर बार बार सही व गलत हमले करके अपना राजनैतिक छोटापन और एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाते विचार शक्ति की कमी का परिचय दे रहे हैं वहीं कांग्रेस के राज्य चुनाव प्रभारी बने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी अपने आप को अभी सुखराम के प्रति उनके द्वेष व राजनैतिक शत्रुता की ऊहापोह से बाहर नहीं निकाल पाये हैं और वीरभद्र सिंह के रैलियों में भाषण एक स्पष्ट नीति पर आधारित न होकर केवल मात्र पहेलियों में समाप्त हो रहे हैं , जो कि उनके अपने भविष्य के लिए भी कष्टप्रद हो सकते हैं | क्यूँ कि जब किसी युद्ध के कमांडर का मन वीरभद्र सिंह की तरह संशय व अनिश्चित निर्णयों पर आधारित होता है तो युद्ध का अंतिम निर्णय भी अनिश्चित हो जाता है | इन पर्यवेक्षकों का मानना था कि शायद वीरभद्र सिंह यह भूल रहे हैं कि इस प्रकार की अनिश्चय की राजनीति अपना कर मंडी सीट पर वे सुखराम के भविष्य का ही नहीं बल्कि अपने भविष्य का भी निर्णय कर रहे हैं | क्यूँ कि यदि कांग्रेसी उम्मीदवार चुनाव हार जाते हैं तो कांग्रेस हाई कमांड के पास अपना नेत्रत्व सिद्ध करने में वे विफल रहेंगे और सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा के साथ साथ वे अपने सुपुत्र विक्रमादित्य सिंह के भविष्य को भी पार्टी में प्रश्नचिन्ह के नीचे ला देंगे | पर्यवेक्षक कहते हैं कि यह वीरभद्र सिंह के और उनके सुपुत्र के व्यक्तिगत हित में है कि वे मंडी सीट पर भी विजय का उतना ही ज़ोर लगाए और कांग्रेस की विजय सुनिश्चित करने के लिए सुखराम के साथ कंधे से कंधा मिला कर विजयश्री सुनिश्चित बनाए, जितना वे अपने एक चहते उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं | पर्यवेक्षकों ने माना कि मुख्यमंत्री के पास अपनी रैलियों में अपने राज्य में अपनी किसी भी उपलब्धि के अभाव में केवलमात्र मोदी व अमित शाह के मुखौटे और उनकी वाणी को उजागर करने के सिवा और कुछ नहीं है | क्यूँ कि वे भी जानते हैं कि पिछले पाँच वर्षों में भाजपा के उम्मीद्वार रामस्वरूप शर्मा के पास उपलब्धियों के नाम पर बताने व गिनाने को कुछ भी नहीं है | पर्यवेक्षक मानते हैं कि बार बार सुखराम का नाम लेकर कथित परिवार हित को सामने रखने की बात करके मुख्यमंत्री यह भूल रहे हैं कि वे जब “ मोदी मोदी “ करते हैं तो वे भी एक ही व्यक्ति के गुणगान करने का कार्य कर रहे हैं और उस पार्टी की चासनी में लपेट कर कड़वा होने पर भी लोगों के गले उतारने का ही प्रयास करते हैं ,क्यूँ कि वे यह मान कर चलते हैं कि राष्ट्र का विकास केवल मात्र पिछले चार पाँच वर्षों में भाजपा के ही कारण हुआ है ,जबकि कांग्रेस केवल हाथ पर हाथ धरे ही बैठी रही है |
पर्यवेक्षकों का कहना था कि मुख्यमंत्री को निश्चित रूप से अपनी भाषा व वाणी को संयमित और शालीनता से रखना चाहिए क्यूँ कि उनके कुछ भाषणों में पद के अनुरूप नहीं बल्कि उससे बहुत ही नीचे वाली भाषा का प्रयोग उचित नहीं है | पर्यवेक्षक कहते हैं कि राहुल से इंगलेंड की किसी मनघडन्त कंपनी पर खुलासा मांगने से पहले मुख्यमंत्री को राफेल जहाज सौदा के कथित घोटाले का खुलासा जनता में करना चाहिए क्यूँ कि यदि इस सौदे में कोई भ्रष्टाचार व अनियमितता नहीं हुई है तो फिर मोदी व उनकी भाजपा की केंद्र सरकार संसदीय समिति से इसकी जांच करवाने से क्यूँ घबरा रहे हैं ?