हिमाचल के लोगों के मन से धीरे धीरे मिटती जा रही है उनकी पुरानी छवि
जनवक्ता ब्यूरो, बिलासपुर
यद्यपि भाजपा के हिमाचल प्रदेश में वरिष्ठतम नेता और कांगडा संसदीय सीट पर निवर्तमान सांसद तथा दो बार आधे अधूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री रह चुके और साहित्यकार तथा व्यवसायी शांता कुमार समाचार पत्रों में बार बार अलविदा चुनावी राजनीति जैसे शीर्षकों से चुनावी राजनीति से सन्यास लेने की घोषणाएँ करते रहे हैं किन्तु फिर अचानक अब उनकी इसी चुनावी राजनीति से बुरी तरह से उलझ जाने और भाजपा विरोधी नेताओं के विरुद्ध स्थान स्थान पर घूम कर उल्टे सीधे वक्तव्य देने पर आम लोगों को आश्चर्य होना स्वाभाविक ही है। उनके समय में राजनीति में दखल रखने वाले वाले कुछ नेताओं का कहना है कि शांताकुमार के इस समय व्यवहार से ऐसा लगता है कि उन्होने अपने उन पुराने सिद्धांतों व आदर्शों को तिलांजलि दे दी है ,जिन के बल पर वे लोगों के दिलों पर राज करने का सम्मान प्राप्त करते रहे हैं। उनके कुछ सहयोगियों का तो यहाँ तक कहना है कि उन्हें लग रहा है कि शांताकुमार इस आयु में आकर अपने पिछले राजनीतिक घटनाकर्मों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भूल कर एक साधारण राजनेता के रूप में अब अपनी छवि बनाते जा रहे हैं और उनकी पुरानी छवि हिमाचल के लोगों के मन से धीरे धीरे मिटती जा रही है। इन मे से कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि दो बार मुख्यमंत्री बनने वाला शांता कुमार और वह सिद्धांतवादी शांताकुमार जैसे खो गया है , नहीं तो कोई कारण नहीं था कि वह भाजपा में मोदी और जयराम ठाकुर के पक्ष में उतर कर राजनीति में अपने घोर प्रतिद्वंदी रहे प्रमुख नेताओं पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह पर आड़े तिरछे ऐसे हमले करते जिन पर वे आज आचरण कर रहे हैं और जो आए दिन लोगों को समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल रहे हैं । उनके एक पूर्व सहयोगी और प्रशंसक रहे एक नेता ने तो यहाँ तक कहा कि आश्चर्य है कि जिस गुजरात के मुख्यमंत्री ने नरेंद्र मोदी को तब प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपाई द्वारा मोदी पर प्रहार करने के बाद केंद्र में एक मंत्री होते हुए सबसे पहले बाजपाई के इस कथन का स्वागत करते हुए मोदी से तुरंत मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र देने की मांग की और जिस शांता कुमार के विरुद्ध भाजपा की आर एस एस लौबी से संबन्धित लोगों ने शांताकुमार के विरुद्ध व्यूह रचना रच कर केंद्रीय मंत्री मण्डल से त्याग पत्र देने को विवश किया और जिस मोदी ने प्रधान मंत्री के रूप में शांता कुमार को मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी सहित कथित मार्ग दर्शक मण्डल की उनकी पूर्व काल की हाथी की सवारी से उतार कर नीचे धरती पर ला बिठाया और जिस मोदी ने इतने वरिष्ठतम नेता शांताकुमार को पार्टी के प्रति आडवाणी की तरह ही उनकी सारी सेवाओं को भुला कर उनका इस चुनाव में टिकट तक काट दिया और यह कहा कि फील्ड सर्वे में अधिकांश लोग उनके विरुद्ध हो गए हैं , उसी मोदी के प्रधानमंत्रित्व को दूसरी बार स्थापित करने के लिए वे इस बुढ़ापे में भी पसीना बहा रहे हैं। कुछ लोगों को तो संदेश है कि बिना किसी कारण के शांताकुमार कुछ नहीं करते और क्या शांताकुमार की मोदी के पक्ष में इस समय इतनी सक्रियता उन्हें भाजपा की ओर से मिले किसी ऊंचे पद के वादे का परिणाम तो नहीं है ? अन्यथा उनकी यह सारी दौड़ धूप का किसी भी प्रकार से कोई औचित्य नहीं बैठता । कुछ लोग शांताकुमार द्वारा अकारण और बिना किसी उकसावे के सुखराम और वीरभद्र सिंह पर किए जा रहे हमलों के लिए भी आश्चर्यचकित है क्यूँ कि उन्हें नहीं लगता कि कोई इस समय अपने पूर्वकाल के सिद्धांतों के अनुरूप चुनावी राजनीति पर अमल कर रहे हैं।