साथ अपनों का मिले तो कोई मुश्किल बड़ी नहीं होती
ऐसा मानना है बिलासपुर की नेशनल हैंडबाल खिलाड़ी सुहाना खान का
महज नौ-दस साल की उम्र में मधुमेह रोग की चपेट में आई इस बालिका ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम चमकाया
जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
चुनौतियों से लडक़र मुकाम हासिल करने में अपना ही आनंद है। परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं और साथ अपनों का मिले तो कोई मुश्किल बड़ी नहीं होती। ऐसा मानना है बिलासपुर की नेशनल हैंडबाल खिलाड़ी सुहाना खान का। महज नौ-दस साल की उम्र में मधुमेह रोग यानि शुगर की चपेट में आई इस बालिका ने अपने पिता के मार्गदर्शन में न सिर्फ स्पोर्टस की गतिविधियों में राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम चमकाया बल्कि इस बीमारी से निरंतर जूझते हुए इसे हराने का बीड़ा उठाया है। सुहाना का मानना है कि वह एक दिन जरूर कामयाब होगी। हैरानी की बात है सुहाना की रक्त कोशिकाओं पर शूगर का इतना बड़ा प्रभाव है कि अब वह दिन में चार बार इंसूलिन लेती है तथा स्वयं को मैदान में सशक्त साबित करने के लिए अद य साहस का परिचय देते हुए हारे हुए मैच को जिता देती है। हैंडबाल फील्ड में मजबूती से गोल की रक्षक सुहाना की फूर्ति और रक्षण देखते ही बनता है। भारतीय केंद्रीय रिजर्व बल में सीनियर डिप्टी कमांडेंट तथा अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हमीद खान के घर 25 दिसंबर 1999 को पैदा हुई सुहाना खान जब दस वर्ष की थी तो अक्सर उसकी तबियत खराब होने लगी, खेलते हुए कमजोरी का महसूस होना तथा प्यास अधिक लगना आदि के लक्षण जब दिखने लगे तो पिता हमीद खान ने चिकित्सक को दिखाया तो सुहाना शूगर रोग से ग्रसित पाई गई। अब सुहाना का ईलाज चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में चल रहा है। अपने स्वास्थ्य की रूटीन चैकिंग अब सुहाना के जीवन का हिस्सा। वर्तमान में सुहाना डीएवी कालेज चंडीगढ़ में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा है।
खेलों में अर्जित उपलब्धियां
दिन में चार बार इंसूलिन लेने के बावजूद सुहाना के हौंसले इस
बीमारी से बड़े हैं तीन बार जूनियर नेशनल में राजस्थान राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुकी सुहाना ने हाल ही में सोलन के बड्डू साहिब में आयोजित जूनियन नेशनल प्रतियोगिता में स्टेट टीम का प्रतिनिधित्व किया। जबकि महाराष्ट्र के सोलापुर में संपन्न हुए एक सीनियर नेशनल का अहम हिस्सा सुहाना बन चुकी है। इंटर कालेज चंडीगढ़ में, तथा अन्य राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में सुहाना शिद्दत से हिस्सा ले चुकी है। सुहाना बताती है कि उसके प्रथम कोच उसके पिता हमीद खान हैं जबकि अन्य खेल की बारिकियां वे कोच नरेंद्र कुमार से सीखती हैं। खेल के दौरान स्वास्थ्य बिगड़ जाए तो वह अपने साथ शूगर व अन्य दवाई या सावधानियां लेकर चलती है। बच्ची
किसी से पीछे न रहे इसके लिए सुहाना के माता-पिता बेहद सहयोग करते हैं तथा सुहाना किसी मुकाम में पीछे न हटते हुए डटकर मुकाबला करती है।
पिता स्वयं है इंटरनेशनल प्लेयर
बिलासपुर नगर के रौड़ा सेक्टर में समाजसेवी व पूर्व पार्षद वीरदीन और माता मीरा के मंझले पुत्र हमीद खान का हैंडबाल खेल की दुनिया में स्वयं में एक नाम है। हिमाचल के साथ भारत की टीम में बतौर गोलकीपर देश को सुनहरे पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले हमीद खान वर्तमान में सीआरपीएफ में बतौर सीनियर डिप्टी कमांडेंट अपनी सेवाएं चंडीगढ़ में दे रही है। हमीद खान की उपलब्धियों की
फेहरिस्त में उन्होंने इंग्लैंड, हांग-कांग, ईरान, बंगला देश, कॉमन वैल्थ चैंपियनशिप में दो-दो बार देश का प्रतिनिधित्व कर
गोल्ड मैडल अपने नाम किया है। इसके अलावा नेशनल व राज्यस्तरीय टूर्नामेंटस में अनगिनत बार हमीद खान राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यही नहीं हमीद खान चार सालों में एक बार होने वाली मिनी ओलंपिक इंडिया में तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 1995 में कामन वैल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल टीम में हमीद खान को बैस्ट गोलकीपर के खिताब से नवाजा जा चुका है तथा उसके बार आज तक यह खिताब किसी खिलाड़ी द्वारा हासिल नहीं किया गया। वीर दीन के सबसे बड़े बेटे पूर्व क्रिकेटर जफर खान पिता के व्यवयाय में हाथ बंटाते हैं जबकि सबसे छोटे फिरोज खान हिमाचल प्रदेश पुलिस में बतौर डीएसपी सेवारत है।
क्या कहते है विशेषक चिकित्सक
इस बारे में फिनिक्स हॉस्पीटल के एमडी डा. दीपक ठाकुर का कहना है कि यह दिन में चार बार इंसुलिन लेने वाली लडक़ी खेल के मैदान में यदि फिट बच्चों का न सिर्फ मुकाबला करती है बल्कि मैडल लेकर आती है तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। अन्य बच्चों को ऐसी बेटी से सीख लेनी चाहिए। डा. दीपक ठाकुर का कहना है कि सुहाना को अपने खान पान के साथ-साथ दवाई व रूटीन चैकअप पर ध्यान देना चाहिए।