मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की मेहनत की जीत में अहम भूमिका
जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं का कॅरिअर चौपट हो गया है। चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की हार का अंतर प्रदेश के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। निकट भविष्य में यह रिकॉर्ड टूटना संभव नहीं लगता। न आश्रय शर्मा लोकसभा चुनाव जीते और न ही कांग्रेस में सुरेश चंदेल का जादू चल पाया। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की मेहनत की जीत में अहम भूमिका रही है। सत्ता में आने के बाद जयराम ठाकुर ने डेढ़ साल के कार्यकाल में प्रदेश के सभी विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर लोगों से सीधा संपर्क स्थापित किया। प्रदेश भाजपा सरकार ने जनमंच जैसी चुनौतीपूर्ण योजना शुरू कर आम लोगों का दिल जीता। इस योजना ने प्रदेश के हर आम आदमी की समस्या का मौके पर समाधान किया। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री के पांव में फ्रेक्चर हुआ। लेकिन पांव की परवाह किए बिना जयराम ने करीब 70 दिन तक राज्यभर में चुनाव प्रचार किया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने 106 बैठकें की। डेढ़ साल के कार्यकाल में जनता में भाजपा की ईमानदार सरकार की छवि बनी। यह राजनीतिक अनुभव का परिणाम है कि जयराम ठाकुर ने चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजिनक तौर पर स्वीकार किया कि प्रदेश में मोदी लहर चल रही है। केंद्र सरकार की योजनाओं आयुष्मान, उज्ज्वला, बेरोजगारों के लिए मुद्रा योजना आदि की सफलता के साथ-साथ राज्य सरकार की वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए आयु सीमा 80 साल से घटाकर 70 साल की। इसके अलावा आयुष्मान की तर्ज पर राज्य सरकार ने हिम केयर स्वास्थ्य बीमा योजना सहित 50 कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव नतीजों ने प्रदेश भाजपा सरकार को राजनीतिक तौर पर भी स्थापित कर दिया। चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामलाल ठाकुर आखिरकार प्रचंड मोदी लहर में इस बार अपने हलके से भी लीड नहीं ले पाए। 2004 के चुनाव में 1600 मत से पराजित होने वाले रामलाल की उस दौर में भी अपने हलके से पांच हजार से ज्यादा की लीड आई थी। उम्मीद थी कि जिले से कांग्रेस को न सही, लेकिन खुद रामलाल अपने हलके से तो कुछ लीड लेकर आगे बढ़ेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह मतों की गिनती के पहले राउंड से लेकर आखिरी दसवें राउंड तक लगातार पिछड़ते ही गए। अनुराग ठाकुर ने मतगणना के शुरू में ही उन पर बढ़त बना ली, जो लगातार आगे बढ़ती रही। अंत में दसवें राउंड में उनके हलके में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का रिकार्ड बन गया। हिमाचल में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस को सबसे कम मत मिले हैं। चारों लोकसभा सीटों में कांग्रेस प्रत्याशियों में शिमला संसदीय सीट से कर्नल धनीराम शांडिल को 30.5 फीसद, हमीरपुर से रामलाल ठाकुर को 28.9 फीसद, मंडी मे आश्रय शर्मा को 25.68 फीसद और कांगड़ा संसदीय सीट से पवन काजल को 24.77 फीसद ही मत मिले।कांग्रेस के तीनों विधायक जो लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे, अपने विधानसभा क्षेत्र से भी लीड नहीं ले सके। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम अपने पोते को मंडी सदर और भाजपा में शामिल अपने बेटे के विधानसभा क्षेत्र से लीड नहीं दिला सके। लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों सहित 45 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इनमें से भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों को छोड़ बाकी सभी 37 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। कुल मतदान के छह फीसद मत जमानत बचाने के लिए हासिल करना जरूरी हैं। हर लोकसभा क्षेत्र में जमानत बचाने के लिए डेढ़ लाख से अधिक मत हासिल करना जरूरी था।