विरोधियों द्वारा विरोध करने के बावजूद भाजपा ने ईवीएम से क्यूँ करवाए चुनाव
राजनीतिक संवाददाता
जनवक्ता बिलासपुर
यह सही है कि सारे देश भर में अभूतपूर्व और प्रत्याशित रूप से भाजपा ने 68 प्रतिशत मत प्राप्त करके इस संसदीय चुनाव में एक नया रिकार्ड बनाया है और इस परिणाम के परिणाम स्वरूप कुछ बड़े बड़े भाजपा नेता अपनी छाती ठोक ठोक कर “ सारा देश हमारे पीछे है “ और “ विरोध पक्ष का सफाया हो गया है “ के नारे लगा रहे हैं और दूसरी ओर विरोध पक्ष के अधिकांश नेता अपनी अपनी पार्टी की हार की विस्तृत समीक्षा किए बिना ही निराश –हताश होकर अपने –अपने घरों में दुबके बैठे अथवा पार्टी के पदों से त्याग पत्र देकर अपने मतदाताओं तथा देश व समाज तथा संविधान व लोकतन्त्र के दायित्वों से बचने की पलायनवादी नीति अपना रहे हैं ।
लेकिन इन परिणामों का श्रेय निष्पक्ष राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार पिछले 2014 के संसदीय चुनाव में किए गए वादों मे से किसी एक भी वादे को पूरा करने में असफल रहने वाले नेता या इसे मोदी अथवा भाजपा की नीतियों की विजय मान रहे हैं याकि उनके इस चुनाव के कथित “ दृष्टि पत्र “ से अत्यंत प्रभावित होकर उन्हें इतना बड़ा विशाल जन समर्थन मिलने का विश्वास किए बैठे हैं , तो यह निश्चित रूप से उनका भ्रम है और यही भारतीय जनमत है जिसने वर्ष 1977 में आपात काल के तुरंत बाद तब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी नेत्रत्व वाली कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से हराया था और फिर कोई अढ़ाई वर्ष के बाद उसी भारतीय जनमत ने उसी पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को संसदीय चुनाव में दो तिहाई से अधिक बहुमत देकर ,अब 2019 में भाजपा की तरह ही , अपनी विजय की उन्माद बनाने वाली विरोध पक्षीय जनता पार्टी का दीमाग ठिकाने लगा दिया था ।
राजनैतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि वर्ष 2014 में तो संसदीय चुनाव से पहले भारत भर के भागों में कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता और तब की सरकार में बैठे दक्षिण भारत के अधिकांश नेताओं के ब्यापक भ्रष्टाचारों से त्रसित और गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में निरंतर 14 वर्ष तक एक सफल और सकारात्मक सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को भाजपा द्वारा आगे करके गुजरात माडल पर ही भारत को उन्नति –प्रगति के पथ पर ले जाने के वादों और मोदी द्वारा उस चुनाव में छाती ठोक ठोक कर प्रति वर्ष दो करोड़ बेरोज गार युवाओं को नौकरियाँ देने ,विदेशी बैंकों में छिपे कथित 3.60 लाख करोड़ काले धन को वापिस भारत में लाकर प्रत्येक के खाते में 15-15 लाख जमा करवाने और देश भर में घर घर में अच्छे दिन लाने के सपने दिखाने के झांसों से भारत के अधिकांश स्थलों पर “ हर –हर मोदी , घर घर मोदी “ के नारे लगा रही थी और चुनाव से दस दिन पूर्व ही सारे देश भर में निश्चित रूप से “ मोदी की सुनामी “ ( विशाल लहर ) चलती नजर आ रही थी , किन्तु इस वर्ष 2019 के चुनाव में तो ऐसी कोई लहर कभी भी मोदी या भाजपा के पक्ष में जनता की ओर से न तो प्रकट हुई और न ही देखी गई । यद्यपि मंचों से भाजपा के बड़े बड़े नेता मोदी की कथित नीतियों की सराहना व बखान करते हुए अवश्य मिल जाते थे ,फिर भाजपा की इतनी बड़ी विजय कैसे और क्यूँ हुई ? क्या कांग्रेस पार्टी का चुनावी एजेंडा जनता को पसंद नहीं आया याफिर कांग्रेस उसका समय पर जनता में प्रचार नहीं कर पाई ? तो फिर विरोध पक्ष के कितने ही बड़े बड़े दल क्यूँ हार गए? क्या जनता ने उनके चुनावी एजेंडों को भी रद्द कर दिया और अपने पिछले लोक प्रिय नेत्रत्व को तिलांजलि दे दी ?
राजनैतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि उनका किसी भी दल या राजनैतिक नेता से कुछ भी लेना देना नहीं है किन्तु निश्चित रूप से मोदी की कोई भी “ सुनामी लहर “ न चले होने के बावजूद भी कई सप्ताह पूर्व ही भाजपा के बड़े बड़े नेताओं का “ मोदी सुनामी चिल्लाना “ केवल मात्र “ ईवीएम “ मशीनों की भविष्य में चुनाव के दिन की जाने वाली कथित गड़बड़ी का ही औचित्य ठहराए जाने का ही प्रयास था । पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह सुनामी लाने के करामात तो “ ईवीएम “ मशीनों की ही करामात है और जब तक “ ईवीएम “ मशीनों का चुनाव में प्रयोग होता रहेगा तब तक भाजपा के पक्ष में ही निरंतर ऐसी सुनामी आती रहेगी और विरोध पक्ष पराजित होता रहेगा ।
पर्यवेक्षक पूछते हैं कि अमेरिका , फ्रांस , जर्मनी ,चीन और जापान जैसे बड़े बड़े तकनीकों में परांगत देश आज भी क्यूँ अपने बड़े से बड़े चुनाव के लिए मतदान पत्र (बेल्ट पेपर ) की चुनावी प्रणाली अपना रहे हैं ? क्या उन्हें नहीं पता कि ईवीएम मशीन जैसी आसान पद्धति का इस कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है जबकि हमारी सारी ईवीएम मशीनें बाहर के देशों से बन कर आ रही हैं और फिर उन देशों ने इस चुनावी पद्धति को क्यूँ रद्द कर दिया है ?
पूछने पर पर्यवेक्षकों ने बताया कि पिछले पाँच राज्यों के चुनाव में मध्य प्रदेश ,छतीसगढ़ और राजस्थान में जो मार्जिन पर कांग्रेस पार्टी को जीत मिली वह निश्चित रूप से इस ईवीएम मशीन चलाने वालों की भूल से ही हुआ है याफिर जान बूझ कर आने वाले 2019 के चुनावों में इस अप्रत्याशित विजय को पाने के लिए तथा ईवीएम मशीनों की गुणवता को प्रमाणित करने की एक राजनैतिक व कूटनीतिक चाल थी ? यही कारण है कि अब उन तीनों राज्यों की सरकारों को भी, दिल्ली का साम्राज्य प्राप्त करने के बाद ,भाजपा पलट कर अपना अधिकार प्राप्त करने का जुगाड़ भिड़ाती फिर रही है ।