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घर परिवार से ही किया जा सकता है पहाडी भाषा का संरक्षण : कुलदीप शर्मा

Byjanadmin

Jun 23, 2019

प्रेस क्लब बिलासपुर में साहित्यक संगोष्ठी का आयोजन

ओ मेरी अम्मा तैं किती पाया लमां, चलदा घराट करिता नकमा

जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
बिलासपुर में रविवार को अखिल भारतीय साहित्यक परिषद व कहलूर सांस्कृतिक परिषद के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को प्रेस क्लब बिलासपुर में साहित्यक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में डा. अनिता शर्मा मुख्यतिथि व कमांडेंट एसपी शर्मा अध्यक्ष तथा आनंद सोहर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। रविंद्र भटटा ने मंच संचालन किया। साहित्यकार कुलदीप चंदेल ने पहाडी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि पहाडी भाषा का संरक्षण घर परिवार से ही किया जा सकता है। चंदेल की कविता की पंक्तियां थी… गंबरी पिस्तुवे री प्रेेम काहनी, लगदी सुनणै औंले जो प्यारी, सुरेंद्र शर्मा ने… आईजा ओ दिल्ली री गोरिये, देखी जा हुसन पहाड़ा दा, आनंद सोहड़ ने अपनी दुर्घटना का बखान करते हुए सुनाया.. ओ मेरी अम्मा तैं किती पाया लमां, चलदा घराट करिता नकमा, जीत राम सुमन ने .. परिणाम चुनाव के आए कुछ ऐसे न तूफान न आंधी, आ गई सुनामी जैसी, आलौलिक शर्मा ने .. चल मेरी जिंदे , नइवीं दुनिया बसानी, डा. जय नारायण कश्यप ने ..सेई बीड़ां सेई बाड़ां, सेई जंगल,सेई डंगर, सेई रांझे पर गल बात सारी बदलोईगी, करण चंदेल ने .. मैं भारत वंशी हूं मैं सुदामा हंू, तुम भारतधीश हो, डा. एआर सांख्यान ने .. नहीं थमेगा सुलगते दिल का यह धुंआ, चाहे डालो दस बाल्टियां या उंडेलो कुंआ। डा. सुरेंद्र शर्मा ने .. कहना जो चाहा था तुमसे कभी, खुद से ही कहा, खुद को ही सुनाया। प्रतिभा शर्मा ने .. जंगल मत काटो लघु कथा सुनाकर कविता सुनाई.. पाहडी साढ़ी मां है, ईसा न बसारिए, पवन कुमार ने इस देश में हुए भगवान राम कृष्ण , रावण जैसे राक्षस हुए बलवान, बड़ी देर भई नंदलाला भजन , इंद्र ठाकुर ने बांसरी बजाकर सुनाया। तरूण टाडू ने .. प्यासी गौरेया कहे मुझे पानी पिला दो, सुरेंद्र गुप्ता ने … इकबाल का गायत्री अनुवाद सविते , विश्व प्राण तू ही है, सुनाया। शिव पाल गर्ग ने .. बांकिए रेशमू, सुशील पुंडीर ने .. सफेद पोश हा हुंई, अश्विनी सुहिल ने … पिता एक उम्मीद है, प्रदीप गुप्ता ने .. बेटा एक कपूत, डूबे सारा परिवार , हुसैन अली ने .. जब से मैंने डेरा डाला, दरवेशों ने मुहल्ले में , डा.प्रशांत आचार्य ने .. जब खडा अस्पताल की कतार, कटु बिमार था अपना मन, डा. नीरज कंवर ने ..वो बेखबर था दोस्तो, बेखर नहीं था, मेरे इश्क का उसे पता नहीं था। एसआर आजाद ने … कभी वो अपनी बांहों में सिमटने लगे हैं। डा. अनिता शर्मा ने .. यह तंद नहीं टूटती सुनाने के बाद फरमाया कि मीडिया का शोर है या मीडिया की बयार देखों भई कैसे चली मीडिया की बयार। रविंद्र भटटा ने .. घरे कदी सुण नी देंणी , बांटा लाणा झाडू कविता सुनाई। राम पाल डोगरा ने सतलुज नदी के तैराकों और पुराने शहर के कलाकारों बारे प्रकाश डाला। मुख्यतिथि डा. अनिता शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि प्रेस क्लब में साहित्यकारों द्वारा इस तरह की संगोष्ठियां आयोजित करने के लिए उन्हें साधुवाद। यह परंपरा जीवित रहनी चाहिए।

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