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दो दिवसीय राज्यस्तरीय गुलेरी जयंती चंबा में आयोजित

Byjanadmin

Jul 10, 2019

प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा राज्यस्तरीय समारोह का आयोजन 6 व 7 जुलाई को किया गया

जनवक्ता डेस्क, बिलासपुर
चंबा चौगान के बगल में स्थित भूरी सिंह संग्रहालय के सभागार में प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा हिंदी संस्कृत के मूर्धन्य कहानीकार व निबंधकार पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती पर राज्यस्तरीय समारोह का आयोजन 6 व 7 जुलाई को किया गया। 6 जुलाई की दोपहर दो दिवसीय आयोजन की शुरुआत कवि गोष्ठी से हुई । प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हंसराज ने विधिवत रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । भाषा एवं संस्कृति विभाग की संयुक्त निदेशक अलका कैंथला ने स्वागत भाषण में पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए मुख्य अतिथि व प्रदेश भर से पधारे साहित्यकारों का स्वागत किया। इस अवसर पर कांगड़ा चंबा के जिला भाषा अधिकारी सुरेश राणा व एसडीएम चंबा दीप्ति मल्होत्रा भी उपस्थित रहे । मुख्य अतिथि उपाध्यक्ष विधानसभा हंसराज ने कहा कि आज सोशल मीडिया की वजह से बच्चों की पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में साहित्यकारों का अमूल्य योगदान रहा है। उन्होंने साहित्यकारों से आग्रह किया कि वे ऐसा साहित्य सृजन करें कि आने वाली पीढ़ियां उन्हें सदैव याद रखें । कवि गोष्ठी की अध्यक्षता कांगड़ा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रत्यूष गुलेरी ने की। मंच संचालन रमेश मस्ताना ने किया । कवि गोष्ठी का आगाज कुल्लू से आई कवियित्री कुमुद शर्मा से करवाया । उन्होंने गुलेरी जी के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए कहा
हर जगह छाए गुलेरी जी की शान निराली
बहुत ऊंचा है नाम कहानीकार थे उत्तम दर्जे के

श्याम अजनबी ने वर्तमान संदर्भ व परिस्थितियों में पार्थ से गांडीव उठाने की गरज से यूं कहा
हे पार्थ मत बैठो सिर झुकाए
कोई नहीं आएगा द्रोपदी का चीर हरण रोकने

हमीरपुर से आए अजीत दीवान ने फरमाया
सांस लेते लेते
आजकल करते करते
वक्त गुजर जाएगा
कल कल छल छल
काल पल में ढल जायेगा

चंबा के फिरोज कुमार फिरोज की पंक्तियां थी
बोया था एक बीज किसी ने
तपती गर्मी बर्फीली हवा बारिश सुखा
सहन कर वृक्ष बन गया है

जाने-माने पर्यावरणविद् सिंहता के कुल भूषण उपमन्यु ने कहा
वेदना की कोख से जन्मी
गाय का बछड़े को दूध पिलाना या बछड़े का चुंघना
जहां दूध पिलाना और चुंघना
हो जाते हैं परस्पर एक दूसरे के पूरक

रम्या चौहान ने कर्म की प्रधानता पर अपने भावों को व्यक्त किया
बस कर्म साधना कर
कुछ ना बोल
कहते हैं तुम्हारे कर्म
तुम को मिलते हैं वापस
फिर किस बात का झगड़ा है राहगीर

सुभाष साहिल में गोष्ठी में रंग जमाते हुए कहा
चलो वहां जाकर घर बनाएं
जहां पर देरो हरम नहीं है

भूपेंद्र जसरोटिया ने अपनी स्वीकारोक्ति में कहा
हिमाकत की है मैंने भी आज
कवियों बक्श देना मुझे

तपेश कुमार भटियात के शब्द थे
आज ढूंढने पर भी कोई लहजा नहीं मिलता
विक्रम मुसाफिर ने अपने दार्शनिक अंदाज में रहस्यों को उद्घाटित करते हुए कहा
तेरी आंखें धूप का है बायोस्कोप
पैहरों देखा करता था मैं
तेरी कलाई टहनी शीशम की
होती बीज रेशम की थी कुर्बातें
टांकते मेरी कमीजों के बटन

रतन चंद निर्झर ने फलदार वृक्ष की वेदना को अभिव्यक्त किया
नम आंखों से देखा होगा
रोपित करने वालों ने पेड़ों के कत्ल का दृश्य
एक सवाल जरूर उछाला होगा
पेड़ काटने वाले की ओर
क्या यही हश्र होता है फलदार पेड़ होने का

चंबा के सोमी प्रकाश भुवेटा के शब्द थे
अब इंसानों को बीमारी नहीं
अहंकार मारने लगा है
अपनों की खबर नहीं
पड़ोसी पर नजर रखने लगा है

जगजीत आजाद की गजल की यह पंक्तियां भी खूब जमी
मेरी भावना मुंसिफ तक पहुंचे भी तो कैसे
कुछ मैं भी धीमा कुछ वह भी बहरा था

नरेंद्र नवल सोलन ने चाटुकारिता की कला पर कुछ यूं कहा
चाटुकारिता गजब की कला है दोस्त
दुर्गेश नंदन की पंक्तियां थी
जानते हो फिर भी क्यों हांकते हो
सुशील पुंडीर परिंदा ने मोहब्बत का संदेश फैलाते हुए कहा
मोहब्बत का पैगाम लाया हूं
अमन का पैगाम लाया हूं

बलदेव खोसला ने चंद शेयर फरमाते हुए कहा
मैं इतना झुका बंदगी मंे तरी ए मालिक
तुझको भी झुकना पड़ा मुझे उठाने के लिए

बिलासपुर से आए अरुण डोगरा रीतू ने व्यंग्य की चासनी में कुछ इस तरह परोसा
हर औरत अपने लाइफ पार्टनर के बारे में
सोचती है कि वह अंबानी की तरह कमाए
और मनमोहन की तरह व्यवहार करे

उपासना पुष्प ने कहा
नहीं मालूम तेरी जीत तुझे किस ऊंचाई पर ले जाएगी
मैंने हार की ढाल में ही जीना सीख लिया है

प्रभात ने बदलते वक्त के मिजाज पर तंज कसते हुए कहा
मैंने सोचा भी न था वक्त ऐसा भी आएगा
पोता दादा को मोबाइल चलाना सिखाएगा

खेमराज खन्ना ने नारी शक्ति को यूं अभिव्यक्त किया
मां पत्नी बेटी सब नारी इनके हाथ में ताकत सारी
मनोज यादव ने प्रकृति के अनुपम सौदर्य को निहारते हुए अपने शब्दों में व्यक्त किया
इस धुंध की घाटी में जब वक्त ठहर सा जाता है
शब्बीर तरन्नुम ने अपनी मधुर वाणी में चंबा के विविध पक्षों को चंबा सहस्त्राब्दी में पिरोते हुए गोष्ठी में रंग जमाया
राजा साहिल ने बसाया है नगर
चंबा है चरपटनाथ का शहर
है अलौकिक सुंदरतम अति सुंदर
पीरों फकीरों देवताओं का है शहर
समृद्ध संस्कृति

डॉ. गौतम व्यथित ने जिंदगी को परिभाषित करते हुए कहा
तिनका तिनका जिंदगी बिखरी चौराहे पर
विज्ञापन हुई है जिंदगी चौराहे पर

उनकी यह पंक्तियां भी खूब सराही गई
कतरने जो आशा की खिंद में सिली रही
हवा का झोंका ले गया रूई के फाहे पर

सरोज परमार ने घड़ी कविता में नारी की मनोव्यथा को इस तरह से कहा
काश यह सुइंयां टूट कर गिर पड़े और वक्त ठहर जाए
ताकि मैं सो लूंू अपनी इच्छा से
खा लूं अपनेे मन से
जीभ को पता तो चले
स्वाद के तीखे पन का

7 जुलाई को इस साहित्यिक आयोजन की कड़ी में लेखक गोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी पर सारगर्भित परिचय विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया । इस सत्र की अध्यक्षता कांगड़ा लोक साहित्य परिषद के अध्यक्ष गौतम शर्मा व्याथित ने की। डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने अपने शोध पत्र में पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी के पारिवारिक परिचय साहित्य के बारे में वर्णित किया और कहा कि के गुलेरी कहानीकार, निबंधकार, पत्रकार संपादक व पत्र लेखक रहे। उन्होंने उनके बहु आयामी पक्ष को रेखांकित किया। पत्र वाचन के पश्चात इस लेखक गोष्ठी में विद्यानंद सरैक, बलवंत कुमार, अरुण डोगरा रीतू, रतन चंद निर्झर, टीसी सावन, शब्बीर तरन्नुम, अशोक दर्द व सरोज परमार ने भाग लिया व कुछ अनछुए पहलुओं को जोड़कर परिचर्चा को आगे बढ़ाया।

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