नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट सभी न्यायिक अधिकारियों को एक्स श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराने की मांग वाली याचिका पर 17 अगस्त यानी आज सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान जजों और ज्यूडिशियल ऑफिसर्स की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा नहीं दायर करने वाले राज्यों पर सुप्रीम कोर्ट ने एक- एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर राज्यो के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन नही किया गया तो सुप्रीम कोर्ट चीफ सेक्रटरी को पेश होने के लिए कहेगा. दरअसल वकील विशाल तिवारी ने यह जनहित याचिका दायर की थी. इसमें केंद्र और सभी राज्य सरकारों को इस संबंध में निर्देश देने का आग्रह किया गया था
सुनवाई के दौरान सरकार और सीबीआई कि ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि सुरक्षा का मामला राज्य का विषय है. लेकिन केंद्र सरकार इस मामले में राज्यों का पूरा सहयोग करती है. एसजी मेहता ने कहा कि जजों कि सुरक्षा के लिए गृह मंत्रालय के दिशानिर्देश हैं, जिनके तहत राज्यों को ज्यूडिशियल अधिकारियों के सुरक्षा की व्यवस्था करनी होती है. वहीं सीजेआई ने कहा कि सवाल ये है कि अभी तक राज्यों ने क्या कदम उठाए है. तुषार मेहता ने कहा कि अदालत चाहे तो इस मामले में निर्देश दे सकती है
वहीं सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये राज्य का मामला है. अलग अलग राज्यों की परिस्थितियां विभिन्न हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के सुस्त रवैये पर सख्त होते हुए कहा कि सवाल यह है कि गाइडलाइन मौजूद है, लेकिन जजों और न्यायालयों की सुरक्षा के लिए इनको कितना लागू किया गया, केंद्र सरकार डीजीपी को निर्देश दे कर सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है. वहीं राज्यों का कहना है कि उनके पास फिलहाल सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए फंड नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंध्र प्रदेश , मिज़ोरम, झारखंड, तेलंगाना, मणिपुर गोवा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्रा की राज्य सरकारों ने निर्देश दिए जाने के बाद भी अपना जवाब अब तक दाखिल नहीं किया है.
दरअसल वकील विशाल तिवारी ने अपने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि वह सभी जजों, ज्यूडिशियल ऑफिसर्स और वकीलों को सुरक्षा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जरूरी दिशानिर्देश लागू करने का निर्देश दे. तिवारी ने अपनी याचिका में कहा था कि देश भर में जजों और वकीलों को धमकियां मिल रही हैं. ज्यूडिशियल ऑफिसर्स पर हमले बढ़े हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोर्ट को तत्काल हस्तक्षेप करने की जरूरत है.