कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की पीठ ने फैसला सुनाया। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में अप्रैल-माह में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा का केस केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा जाएगा। मामले में स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) भी गठित होगी। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर सोमेन मित्रा और अन्य को एसआईटी का सदस्य बनाया गया है। जांच कमेटी अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को देगी। इसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश करेंगे। हाईकोर्ट के इस आदेश को राज्य की ममता बनर्जी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
बता दें, 3 अगस्त को कलकत्ता हाई कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने हिंसा से संबंधित जनहित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने संबंधित पक्षों से उसी दिन तक कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने को भी कहा था। कोर्ट ने आज अपने फैसले में राज्य मानवाधिकार रिपोर्ट को मान्यता दी। हिंसा की जांच के लिए गठित सिट अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट की खंडपीठ को सौंपेगा। यदि कोई और शिकायत रहेगी, तो उसे खंडपीठ के समक्ष लाना होगा।
पीठ ने राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एनएचआरसी के चेयरमैन को एक कमेटी बनाकर जांच कराने का आदेश दिया था। जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ममता बनर्जी सरकार को दोषी माना है। उसने अपनी सिफारिशों में कहा है कि दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों की जांच सीबीआई से कराई जाए और इन मामलों की सुनवाई बंगाल के बाहर हो। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अन्य मामलों की जांच भी कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल से कराई जाना चाहिए। संबंधितों पर मुकदमे के लिए फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाई जाए, विशेष लोक अभियोजक तैनात किए जाएं और गवाहों को सुरक्षा मिले। आज मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को मान्यता देते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि शीघ्र ही हिंसा से संंबंधित मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दे।
आयोग ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव के बाद की हिंसा के आरोपों की सत्यता की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया था। 2 मई को विधानसभा परिणामों की घोषणा के बाद, पश्चिम बंगाल के कई शहरों में चुनाव के बाद हिंसा की घटनाएं हुईं। यह आरोप लगाया गया कि भारी जनादेश के साथ जीतने वाली टीएमसी ने आंखें मूंद लीं, जब उसके समर्थक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी कार्यकर्ताओं से भिड़ गए और कथित तौर पर हिंसा में लिप्त है। बंगाल सरकार ने, हालांकि, आरोपों को बेतुका, निराधार और झूठा करार दिया और कहा कि एनएचआरसी द्वारा समिति का गठन सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ पूर्वाग्रह से भरा था।