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ईश्वर के तत्व रूप का दर्शन केवल पूर्ण गुरु की कृपा से ही संभवः साध्वी कालिंदी भारती

Bynewsadmin

Oct 17, 2022

देहरादून  दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा सेक्टर-43, छलेरा, नोएडा, उत्तर प्रदेश में श्रीमद्भागवत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का अनुष्ठान किया गया है। कथा के द्वितीय दिवस में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी कालिंदी भारती जी पष्ठम् स्कंध का व्याख्यान करते हुए कहा कि अजामिल ने एक अश्लील दृश्य देखा और वह पतन के गर्त में गिर गया। यदि आज के परिवेश में देखा जाए तो हमारे चहुं और अश्लीलता ही अश्लीलता है। अश्लील फिल्मी पोस्टर गलियों में, बाजारों में देखने को मिल जाते हैं, अश्लील गाने सुनने को मिल जाते हैं। आज मानव ने वासना व अश्लीलता की हदें ही पार कर दी है। एन.एच. के डेटाबेस के हिसाब से इंटरनेट पर सन् 1998 में 140 लाख अश्लील पृष्ठ थे। सन् 2003 में ये बढ़कर 2600 लाख और सन् 2004 में 4200 लाख हो गए।
आज छः व सात वर्षाे के उपरांत ये 20 गुणा बढ़ चुके हैं। 8-16 वर्ष के बच्चों में से 90 प्रतिशत बच्चे अपना होमवर्क करते हुए इंटरनेट पर अश्लील चित्र देखते हैं। बालक ही नहीं हर वर्ग व आयु आज कामुकत की इस शर्मनाक दौड़ में भाग रहा हैं। इंटरनेट के सर्च इंजन्स 35 प्रतिशत बार शीलहीन या अभद्र विषयों और वेबसाइटों की खोज करने में व्यस्त होते हैं। आप विचार करें आज कितनी अश्लील फिल्में, अश्लील गाने हैं जिनमें रिश्ते नातांे की मर्यादा खत्म कर दी जाती है। और जब कोई ऐसी फिल्म देखेगा चाहे वह बच्चा हो या नौजवान उसका मन कितना दूषित हो जाएगा। दूषित मन के कारण नारी शोषण जैसी घटनाएं घट रहीं हैं। चरित्र दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा हैं। यदि चरित्र गिर गया तो समझे सब कुछ चला गया। तभी महापुरुषों ने कहा कि चरित्र की रक्षा करना तो प्रत्येक मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है। चरित्र हमारे जीवन का सबसे अनमोल रत्न है। यही हमें सफलता की ऊंचाइयों या पतन की खाइयों में धकेलता है। शिक्षा के द्वारा चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता क्योंकि रावण भी शिक्षित था परंतु उसका आचरण गिरा हुआ था। आज शिक्षित कहलवाने वाला वर्ग चरित्रहीन हो रहा है। सद्चरित्रता शिक्षा व बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती। शास्त्र कहते हैं- ‘पहले जागरण, फिर सदाचरण’ जागरण की नींव पर ही सुंदर आचरण की दीवार का निर्माण संभव है। जागरण का भाव अपने भीतर के तत्त्व रूप का दर्शन करना। यह केवल एक पूर्ण गुरू की कृपा से ही संभव होती है। जागरण के पश्चात् मनुष्य जान लेता है कि उसमें परमात्मा की सत्ता विराजित है। फिर धीरे-धीरे साधना-सुमिरन द्वारा उसके कलुषित विचार, दुर्भावानाएं एवं बुरे संस्कार ज्ञानाग्नि में भस्म हो जाते हैं। उसका चरित्र निखरता जाता है।

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