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शिव व सती विवाह कथा सुनकर मंत्रमुग्ध हुये श्रोता

Bynewsadmin

Feb 2, 2025

उत्तरकाशी,। शिव महापुराण कथा के सातवें दिन भगवान शिव और माता सती का विवाह प्रसंग सुनकर मंत्रमुग्ध हो गये श्रोता। यमुघाटी के थान गांव  (ब्रह्मपुरी) में चल रहे 11 दिवसीय शिव महापुराण  कथा के सातवें दिन रविवार को वृन्दावन धाम के संत लवदास जी महाराज ने
भगवान शिव और माता सती के विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी, प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। राजा दक्ष की पुत्री श्सतीश् की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने भगवान शिव से विवाह किया। रुद्र को ही शिव कहा जाता है और उन्हें ही शंकर। पार्वती शंकर के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्र गणेश, कार्तिकेवय और पुत्री वनलता। जिन एकादश रूद्रों की बात कही जाती है वे सभी ऋषि कश्यप के पुत्र थे उन्हें शिव का अवतार माना जाता था।
मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और उनको भगवान शिव से प्रेम हो गया। लेकिन ब्रम्हा जी के समझाने उपरांत प्रजापति दक्ष की इच्छा से सती ने भगवान शिव से विवाह किया । दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। कथा पंडाल से संत लवदास जी महाराज ने  युवाओं से सावधान रहेंने की सलाह दी। उन्होंने युवा पीड़ी को नशा जैसे जहर से बचने का आह्वान करते हुए कहा कि देश में ऐसी भी ताकतें जो सनातन धर्म पर जहर घोलने की कुचेष्टा कर युवा पीढ़ी का माइंड वास कर  कैसे भटकाया जा  यह किसी से छुपा नहीं है।
पूर्व संत लवदास जी महाराज ने कहा कि शिव महापुराण कथा श्रवण व शिव भक्ति के लिए पहले अहंकार दूर करना होगा। क्योंकि जब तक अहंकार होता है तक भोलेनाथ प्रसन्न नही होते है। जिस प्रकार आदि देव महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है उसी उनको भक्त भी भोले पसंद है। जब तक अहंकार दूर नही होगा तब तक शिव की भक्ति प्राप्त होना कठिन है। इस मौके पर इस मौके पर मण्डप आचार्य-दी विराजे नौटियाल, मधुवन डिमरी ,पुजारीष् गणेश प्रसाद बिजल्वाण ,चन्द्रमणी सेमवाल,  सरनौल से रेणुका के पुजारी, राम कृष्ण सेमवाल, केशवानंद सेमवाल, राम प्रसाद बहुगुणा, विकास डिमरी, संदीप खंडूरी,मनमोहन बिजल्वाण,राजेश डिमरी, यमदग्नी ऋषी मंदिर समिति अध्यक्ष हरदेव चौहान, प्यारचंद सिंह दरमियान सिंह, वीरेंद्र सिंह, एलएम सिंह, जोगेंद्र सिंह दशरथ सिंह , केंद्र सिंह , भागीराम चौहान, गजेन्द्र सिंह, भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान, पूर्व विधायक केदार सिंह रावत, व्यापार मंडल अध्यक्ष बड़कोट धनवीर रावत, शांति प्रसाद डिमरी, आदि समस्त क्षेत्र से हजारों भक्त उपस्थित रहे।

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