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उत्तराखंड में सूख रहे 500 जल स्रोत, 1544 इलाकों पर संकट

Bynewsadmin

Mar 22, 2018

देहरादून: राज्य गठन के 18 साल बाद भी पेयजल किल्लत बनी हुई है। जबकि मानकों के अनुरूप पानी पाने का अधिकार उपभोक्ताओं का हैं। सभी को समुचित पानी उपलब्ध हो, यह तभी संभव है, जब हम दीर्घकालिक योजनाओं पर काम करें और जल स्रोतों के संरक्षण के लिए भी पुख्ता इंतजाम हो। जबकि आज की तस्वीर इससे उलट है। प्रदेश में इस समय 500 पेयजल स्रोत सूखने के कगार पर हैं और इनके दीर्घकालिक समाधान की जगह हमारे अधिकारी फौरी उपाय पर ही बल दे रहे हैं। इस वर्ष भी गर्मियों में पेयजल संकट से जूझने के लिए जल संस्थान ने अस्थायी व्यवस्था पर 14.27 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया है।

प्रदेशभर में पेयजल की स्थिति पर गौर करें तो पता चलता है कि जल संस्थान ने ही 1544 इलाकों को अभावग्रस्त श्रेणी में रखा है। इनमें सबसे अधिक 391 इलाके उस देहरादून जिले के हैं, जहां की अधिकांश जलापूर्ति ट्यूबवेल पर निर्भर है। यह निर्भरता भी इसलिए है कि दून में नदी व झरने आधारित स्रोत ना के बराबर हैं और इनका जलप्रवाह पहले से ही काफी कम हो चुका है। यदि हमारे अधिकारी कल के जल के प्रति गंभीर होते तो आज धड़ाधड़ नए ट्यूबवेल निर्माण की जगह ग्रेविटी आधारित योजनाओं का निर्माण कर चुके होते।

जिलावार संकटग्रस्त योजनाएं (जल प्रवाह में 50 से लेकर 90 प्रतिशत व इससे अधिक की कमी)

पौड़ी 185, टिहरी 89, चंपावत 54, अल्मोड़ा 46, पिथौरागढ़ 31, नैनीताल 25, उत्तरकाशी 25, चमोली 24, रुद्रप्रयाग 15, देहरादून 12, बागेश्वर 06

फौरी व्यवस्था पर संभावित खर्च (लाख रु. में)

जनपद——————इलाके———संभावित व्यय

देहरादून—————–391————-522.10

नैनीताल——————240————119.77

टिहरी———————169————157.30

अल्मोड़ा——————179————-51.15

पौड़ी———————–112————110.72

पिथौरागढ़——————82————–59.15

चंपावत———————78————–43.35

रुद्रप्रयाग——————–67————–58.50

चमोली———————-60————–96.82

उत्तरकाशी——————57————-122.87

हरिद्वार———————46————–40.36

बागेश्वर———————-37————–9.21

ऊधमसिंहनगर—————26————-35.70

कुल————————1544———-1427.01

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