• Fri. Nov 22nd, 2024

SC/ST एक्टः सुप्रीम कोर्ट में दोपहर 2 बजे होगी सुनवाई, अटॉर्नी जनरल ने कहा- मामला बहुत गंभीर

Bynewsadmin

Apr 3, 2018

नई दिल्ली । एससी-एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। उच्चतम न्यायालय खुली कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि भारत बंद के दौरान हिंसा में करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हालात बहुत कठिन बने हुए है, इसलिए मामले की जल्द सुनवाई होनी चाहिए। जिसके चलते आज दोपहर दो बजे सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से भारत बंद के दौरान हुई हिंसक झड़कों का हवाला देते हुए मामले की तत्काल सुनवाई का आग्रह किया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में मामले की सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति ए के गोयल और यू यू ललित की पीठ को आज दोपहर 2 बजे पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गए हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा, यह एक आपातकालीन स्थिति है क्योंकि बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है और आज पुनर्विचार याचिका पर तत्काल सुनवाई होनी चाहिए। तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम को देखते हुए शीर्ष कानून अधिकारी ने न्यायमूर्ति गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष समीक्षा याचिका की तत्काल सुनवाई का उल्लेख किया, जो न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन के साथ बैठेंगे। बेंच ने खुली अदालत में समीक्षा याचिका को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की है।

बता दें कि इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हुए मामले की जल्द सुनवाई की अपील की थी। सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 में अनुसूचित जाति, जनजाति को मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।

समाज में पनपा आक्रोश

20 मार्च को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सवाल उठाते हुए तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। समाज के एक हिस्से में इसका विरोध हुआ था। राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर सरकार के अंदर भी आवाज उठी थी। बाहर विपक्ष जितने सख्त शब्दों में सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है, सरकार ने उसी दृढ़ता से हर पहलू पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और पुराने कानून को आवश्यक बताया। सरकार ने मौखिक दलील का वक्त देने का अनुरोध भी किया है। गौरतलब है कि पुनर्विचार याचिका पर सामान्यतया पुरानी पीठ के जज चेंबर में विचार करते हैं। मसला जब सुनवाई के लिए लगेगा तो जाहिर तौर पर केंद्र सरकार उन सभी बिंदुओं पर दलील देगी। वहीं से पूरे देश को भी संदेश देने की कोशिश होगी कि वह पूरी तरह दलित और आदिवासी हक के साथ खड़ी है।

पुनर्विचार याचिका के आधार

– केंद्र सरकार को इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया था।

– कानून बनाना संसद और विधानसभाओं का काम है।

– एससी, एसटी अत्याचार रोकथाम कानून 1989 भी संसद ने बनाया था।

– कोर्ट ये नहीं कह सकता है कि कानून का स्वरूप कैसा हो।

– किसी कानून को सख्त या नरम बनाने का अधिकार भी संसद के पास है।

तीन तथ्यों पर रद हो सकता है कानून

– अगर मौलिक अधिकार का हनन हो

– यदि कानून गलत बनाया गया हो

– संसद ने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर कानून बनाया हो

यह है कानून में प्रावधान

– अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 1989 में पीड़ित पक्ष के शिकायत कराते ही कार्रवाई और गिरफ्तारी का प्रावधान है।

– ऐसे मामलों में आरोपितों को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जा सकती है। गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में सुनवाई के बाद ही जमानत संभव थी।

उग्र आंदोलनों से फासले रखने वाली मायावती समर्थन में उतरीं

राजनीतिक उहापोह में उलझी बहुजन समाज पार्टी ने तेवर बदल लिए हैं। दलित वोट बैंक की वापसी कराने की चाहत में वह सोमवार को आरक्षण आंदोलन के समर्थन में खुलकर सामने आ गई। आमतौर पर उग्र आंदोलनों से दूर रहने वालीं मायावती ने सोमवार को दलित संगठनों के भारत बंद को समर्थन देने के साथ ही अपने कार्यकर्ताओं को भी मैदान में उतारा। इतना ही नहीं आनन-फानन में बयान जारी कर आंदोलन की सफलता पर आभार भी जता दिया और दलित हितों की रक्षा के लिए सड़क पर संघर्ष जारी रखने की घोषणा भी कर डाली। भारत बंद के आह्वान को लेकर रविवार तक मौन साधे रखने वाली बसपा यूं ही नहीं आक्रामक हुई हैं। गत विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपना न्यूनतम प्रदर्शन करने वाली बसपा को दलित वोट बैंक बचाए रखने की फिक्र सता रही है। उक्त दोनों चुनावों में दलितों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जाने से वह बेचैन हैं। भाजपा ने राष्ट्रपति पद पर उत्तर प्रदेश के रामनाथ कोविंद को बैठाकर बसपा की बेचैनी और बढ़ा दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा दलितों और पिछड़ों को तरजीह देने के कार्यक्रमों से भी बसपा फिक्रमंद है।

भीम आर्मी जैसे संगठनों से चुनौती

दलित बैंक बचाने की चुनौती केवल विपक्षी दलों से ही नहीं मिल रही है, बल्कि दलितों के नए संगठनों से भी मिल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से भीम आर्मी की लोकप्रियता बढ़ी है, उससे दलित वोट बैंक में बिखराव का खतरा बढ़ा है। भीम आर्मी के समर्थन से ही गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित बाहुल्य जिले सहारनपुर में सफलता मिली और बसपा को खाली हाथ रहना पड़ा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *