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भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा धूमधाम से शुरू, भक्तों की भारी भीड़

Bynewsadmin

Jul 14, 2018

पुरी/द्वारका। भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा आज शुरू हो गयी। ओडिशा के पुरी और गुजरात के द्वारका से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा धूमधाम से शुरू हुई। भव्य यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हैं। यूनेस्को की ओर से पुरी के एक हिस्से को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किये जाने के बाद यह पहली रथयात्रा है।

अहमदाबाद से मिली खबरों के अनुसार, सालाना जगन्नाथ यात्रा की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान जगन्नाथ मंदिर में पारंपरिक नैवेद्य सामग्री भेजी है। प्रधानमंत्री पिछले कई वर्षों से मंदिर को रथयात्रा से पहले नैवेद्य सामग्री भेजते रहे हैं। मंदिर के प्रमुख पुरोहित दिलीपदासजी महराज ने कहा, ”हमेशा की तरह प्रधानमंत्री ने अपने प्रतिबद्धता बनाए रखी और अंकुरित मूंग, जामुन, अनार और आम भेजे। इनका भोज भगवान जगन्नाथ को लगाया जाएगा।”
मंदिर के न्यासी महेंद्र झा ने बताया कि मोदी अपने शुरूआती दिनों में यहां कुछ समय के लिए रहा करते थे। उन्होंने बताया, ”मोदी अपने जीवन के शुरूआती दिनों में यहां रूके थे, जब वह मशहूर व्यक्ति नहीं थे। मोदी इस मंदिर से जु़ड़े हुए हैं।” भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान उन्हें पारंपरिक रूप से अंकुरित मूंग और और जामुन का भोग लगाया जाता है।
भगवान जगन्नाथ की 141वीं रथयात्रा जमालपुर क्षेत्र के जगन्नाथ मंदिर से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में आज सुबह निकली। राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित कई प्रमुख हस्तियां भी रथयात्रा में शामिल हुईं।
उल्लेखनीय है कि दस दिवसीय यह रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक उत्सवों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार ‘जगन्नाथ’ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। जगन्नाथ जी का रथ ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ कहलाता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे ‘त्रैलोक्यमोहिनी’ या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं। बलराम जी का रथ ‘तलध्वज’ के नाम से पहचाना जाता है। रथ के ध्वज को ‘उनानी’ कहते हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है वह ‘वासुकी’ कहलाता है। सुभद्रा का रथ ‘पद्मध्वज’ कहलाता है। रथ ध्वज ‘नदंबिक’ कहलाता है। इसे खींचने वाली रस्सी को ‘स्वर्णचूडा’ कहते हैं।

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