
अरूण डोगरा रीतू
मुख्य संपादक जनवक्ता
बिलासपुर भाषा एवं संस्कृति विभाग के सभागार में दो दिनों तक चली संगोष्ठी में अनुज धर ने पहले दिन लाल बहादुर शास्त्री की मौत के रहस्यों से पर्दा उठाया और पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से समझाया कि ताशकंद में जो भी हुआ उसके पीछे क्या राज रहा। दूसरे दिन उन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के बारे में लगातार तीन घंटे व्याख्यान दिया साथ में पावर प्रेजेटेशन भी दी। पहले दिन सदर के विधायक सुभाष ठाकुर मुख्य अतिथि रहे तो दूसरे दिन कामधेनु हितकारी मंच के प्रधान नानक राम जी ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। विश्व प्रसिद्ध लेखक अनुज धर को बिलासपुर लाने में बिलासपुर के बंदला के युवा डा. महेंद्र व उनकी टीम ने अहम भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े रहस्यों पर काम कर रहे लेखक अनुज धर ने नेता जी की मौत के रहस्य से पर्दा उठाया।

बिलासपुर में सभागार के बाहर डा. महेंद्र की टीम के साथ अनुज धर
उन्होंने कहा कि भारत और जापानी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को विमान दुर्घटना बताया था। भारत सरकार की 1956 में बनी शाहनवाज जांच कमेटी और 1970 में बने खोसला कमीशन ने भी नेता जी की मौत का कारण विमान दुर्घटना ही बताया। साल 1999 में एमके मुखर्जी आयोग का गठन हुआ, जिसने बताया कि जापान में 18 अगस्त को कोई दुर्घटना हुई ही नहीं थी। नेताजी की मौत विमान दुर्घटना से नहीं हुई थी। इस बात को अंग्रेज पहले ही कहते आ रहे थे। इस दौरान उन्होंने फैजाबाद के गुमनामी बाबा के ही नेताजी होने के कई सबूत भी दिखाए।सरकार द्वारा गुमनामी बाबा के दांतों का डीएनए टेस्ट करवाने पर धर कहते हैं कि जिस सरकार को नेताजी की मौत का कारण जानने में पचास साल लग गए उसके डीएनए टेस्ट पर क्या भरोसा किया जा सकता है। गौरतलब है कि नेताजी के पारिवारिक सदस्यों से बाबा का डीएनए मैच नहीं हुआ था।

पत्रकार अनुज धर की लिखी किताब योअर प्राइम मिनिस्टर इज डैड
पत्रकार अनुज धर की लिखी किताब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के ऑफिशल वर्जन को नकारती है, जिसके मुताबिक उन्हें 1945 में ताइवान में हुए विमान हादसे का शिकार बताया जाता रहा है। यह किताब अमेरिका, ब्रिटेन की गुप्त सूची से हटाए गए रेकॉर्ड्स और भारतीय अथॉरिटीज के दस्तावेजों पर आधारित है, जिन्हें पिछले 65 सालों से सीक्रेट रखा गया। किताब के बाबत धर ने कहा है कि बतौर विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने विमान-हादसा थिअरी को अपनी सीमा से बाहर जाकर सपोर्ट किया। हालांकि, सबूतों से साफ जाहिर था कि नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी। 1996 की एक घटना का हवाला देते हुए धर कहते हैं कि विदेश मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी ने एक सीक्रेट नोट के जरिए सलाह दी थी कि भारत को बोस की मौत से जुड़े सबूत इकट्ठा करने के लिए रसियन फेडरेशन को सख्त कदम उठाने के लिए नोटिस जारी करना चाहिए। किताब के मुताबिक, मुखर्जी ने इस नोट को देखा और विदेश सचिव सलमान हैदर को जॉइंट सेक्रेटरी से मिलने का आदेश दिया। मीटिंग के बाद जॉइंट सेक्रेटरी नोटिस के बारे में भूल गए और स्वार्थी हो गए। उन्हें ऐसा लगा कि केजीबी (रुसी खुफिया एजेंसी) आर्काइव्स को खंगालने से भारत और रूस के संबंध खराब होंगे। उन्होंने लिखा है, ‘ऐसे में मुखर्जी बोस की मौत की ताइवान थिअरी के सबसे पहले समर्थक बन गए।’ किताब के बाबत धर का दावा है कि 1994 में विदेश मंत्रालय ने गृह मंत्रालय के बोस की मौत से जुड़े एक गोपनीय सवाल का नकारात्मक जवाब दिया था। सवाल बोस की मौत की पुष्टि करने के लिए डेथ सर्टिफिकेट की मांग से जुड़ा था, जिसे प्रस्तुत करने से जापानी सरकार ने इनकार कर दिया था। एक दशक बाद, मुखर्जी ने जस्टिस मुखर्जी कमिशन ऑफ इन्क्वॉयरी के सामने अपना पक्ष रखा। मुखर्जी कमिशन के सामने पेश होने वाले 7 गवाहों में से एक थे। मुखर्जी ने ताइवान थिअरी पर ही अपना विश्वास जताया। विडंबना यह है कि 2004 में मुखर्जी की पार्टी फिर सत्ता में आई और कमिशन की रिपोर्ट पर फैसला देने वाले जजमेंट पैनल का मुखर्जी हिस्सा बने। उन्होंने रिपोर्ट के नतीजों को सिरे से खारिज कर दिया। किताब के लेखक धर का मानना है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि विमान हादसे के बाद बोस रूस में थे। 1945 से लेकर 1990 तक भारतीय सरकार ने इस बारे में रूसी अथॉरिटीज से किसी तरह की जानकारी लेने के बारे मे नहीं सोचा। यह पूछे जाने पर कि मान लिया जाए कि 1945 में नेताजी की मौत नहीं हुई थी, तब असल में क्या हुआ था?, धर ने कहा, ‘कुछ सबूत ऐसे हैं जिनसे यह साबित होता है कि नेताजी की मौत फैजाबाद में हुई। लेकिन, उनकी मौत से जुड़ी पहेली तभी सुलझ सकती है जब सरकार इंटेलिजेंस एजेंसियों के पास मौजूद दस्तावेजों को खंगाले।’