चार शिविरों में 450 किसानों को किया प्रशिक्षित
बिलासपुर -अरुण डोगरा रीतू
जिला में शून्य लागत प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग (आतमा) द्वारा किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षित करने के लिए जागरूकता शिविरों को आरंभ किया गया है। उपायुक्त विवेक भाटिया ने जानकारी देते हुए बताया कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती पर पूरे प्रदेश में शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जिला बिलासपर में 4 शिविर सदर बिलासपुर, घुमारवीं, झंडूता और स्वारघाट में आयोजित किए गए जिसमें किसानों को शून्य बजट प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया गया। उन्होंने बताया कि इन शिविरों में जिला के 456 किसानों ने भाग लिया जिन्हें शून्य लागत प्राकृतिक खेती के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि 30 सितम्बर से 4 अक्तूबर तक चैधरी श्रवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में 5 दिन का शून्य लागत प्राकृतिक खेती पर शिविर लगाया जाएगा जिसमें बिलासपुर जिला के लगभग 456 किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण स्वयं इस खेती के जनक पदमश्री सुभाष पालेकर देंगे।
उन्होंने बताया कि जिला में आयोजित 4 शिविरों में जिला की सभी 151 पंचायतों के 456 इच्छुक किसानों ने प्रशिक्षण का लाभ उठाया। उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण का लाभ उठा चुके किसान आगामी प्रशिक्षण के लिए पालमपुर में भेजे जाएंगे।
उन्होंने बताया कि जिला में आयोजित शिविरों में किसानों को बताया गया कि जमीन के थोड़े से हिस्से में परीक्षण आधार पर इस खेती को किस प्रकार शुरू किया जा सकता हैं और बेहतर परिणाम आने पर इसके विस्तारीकरण के बारे में भी प्रयास किए जा सकते है। शिविर में किसानों को यह भी बताया जा रहा है कि यह खेती जहां उनकी आर्थिकी को बढ़ाने में सहायक होगी वहीं आमजन के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगी। इस खेती में खाद्यान फसलों के साथ दलहन व तिलहन के अतिरिक्त सब्जियों की फसलों को लगाना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय जैसे साहीवाल, थारपारकर, रैडसिंधी, राठी व पहाड़ी गाय( ठुठ)है। एक देसी गाय 150 बीघा जमीन में खेती करने के लिए पर्याप्त है। इस पद्धति में 90 प्रतिशत पानी व बिजली की बचत होती है। आधुनिक व रासायनिक खादों व कीटनाशकों के उपयोग से किसानों के खेतों की उपजाऊ शक्ति दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है इसलिए किसानों को देसी गाय के गोबर से तैयार खाद का प्रयोग करना चाहिए जो कि मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए बेहतर व कारगर है। इस खेती के लिए बाजार से किसान को कुछ भी मोल नहीं लेना होता है सभी आवश्यक सामग्री घर पर ही प्रकृति द्वारा उपलब्ध पौधों से हो जाती है।
किसानों को गोमूत्र व गोबर से ज़ीरों बजट की खेती के लिए तकनीकी प्रशिक्षण देने के साथ-साथ अन्य प्रदेशों में भी भ्रमण के लिए ले जाया जाएगा। प्रशिक्षित किसान अन्य किसानों को भी इसके संदर्भ में प्रेरित करेंगे ताकि सभी किसान प्राकृतिक फसल की बेहतर पैदावार तैयार कर सकें।
किसानों को गोबर व गोमूत्र से तैयार जीवामृत, धनजीवामृत, बीजामृत रासायनिक खादों के प्रयोग का विकल्प है। इस खेती में लगने वाले हानिकारक कीट पतंगों व बीमारियों से निजात पाने के लिए नीमास्त्र, ब्रहमास्त्र, अग्निअस्त्र को बनाने की विधि के बारे में भी विस्तृत रूप से जानकारी दी जा रही है।