ऋषिकेश। पूज्यपाद आचार्य श्री स्वामी राज राजेश्वरानंद जी महाराज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के महासचिव स्वामी हरि गिरि जी महाराज, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज की महाकुम्भ हरिद्वार को दिव्य, भव्य और ऐतिहासिक कुम्भ बनाने हेतु विस्तृत चर्चा हुई।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि वर्ष 2021 का कुम्भ दिव्य और अलौकिक कुम्भ हो। कुम्भ के माध्यम से पूज्य संतों और महापुरूषों द्वारा पूरे विश्व को हरित, स्वच्छ और प्लास्टिक मुक्त कुम्भ का संदेश दिया जा सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि पूज्य संतों के उपदेशों, आदेशों और संदेशों में एक शक्ति है इसका अनुभव केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व सदियों से करता चला आ रहा है। पूज्य संतों के संदेशों की शक्ति को प्रकृति के साथ जोड़कर तथा भुलाई जा रही संस्कृति को जीवित रखने के लिये कुम्भ एक दिव्य अवसर है। इससे पर्यावरण बचेगा और आने वाली पीढ़ियाँ भी बचेगी।
स्वामी जी ने कहा कि तीर्थ क्षेत्र की पवित्रता को ध्यान में रखते हुये कुम्भ मेला को क्लीन, ग्रीन स्वरूप प्रदान करने के साथ एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त रखना होगा। गंगा जी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये टाट कल्चर को बढ़ावा देना होगा। ताकि यहां आने वाले लोगों का नजरिया बदले, वे यहां से एक नई सोच लेकर जायें और कुम्भ से लोगों को एक दिशा मिले। साथ ही कुम्भ के दौरान अध्यात्म के साथ-साथ योग, आयुर्वेद, उत्तराखण्ड की संस्कृति, भोजन और प्रमुख पर्यटन स्थलों को आगे लाने तथा विश्व के लोगों को इससे अवगत कराने हेतु प्रयास किया जाना चाहिये।
उत्तराखण्ड राज्य योग, अध्यात्म, स्वच्छ जल और प्राणवायु आॅक्सीजन से समृद्ध है। कुम्भ के दौरान भारत सहित विश्व के अनेक देशों से यहां पर श्रद्धालु और पर्यटक आयेंगे जो यहां से दिव्यता के साथ यहां से स्वच्छता और हरियाली का संदेश भी लेकर जायें तो और भी बेहतर होगा।
स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छता की व्यवस्थाओं में हमें सबसे पहले कूड़ा कचरा प्रबंधन, व्यवस्थित कचरा डंपिग क्षेत्र आदि को और बेहतर करना होगा। कुम्भ मेला को एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त बनाना हम सभी का प्रथम लक्ष्य होना चाहिये। कुम्भ के दौरान बनाये जाने वाले शिविरों में प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल न करने पर भी विस्तृत चर्चा हुई। उन्होने कहा कि पूज्य संतों और सरकार को अभी से ही मिलकर यह तय करना होगा कि कुम्भ परिसर और शिविरों में भण्डारा और अन्य गतिविधियों के दौरान भी प्लास्टिक के कप, प्लेट, थर्माकोल और अन्य एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का पूर्ण रूप से निषेध किया जाये।
साथ ही कथाओं और उद्बोधनों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश प्रसारित हो तो कुम्भ परिसर को स्वच्छ रखा जा सकता है। दिव्यता से युक्त कुम्भ अब जागरण का केन्द्र भी बने।